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________________ भगवती सूत्र श. २० : उ. १० : सू. १०९-११५ अनेक षट्क-एक-नोषट्क - समर्जित उनसे संख्येय-गुण हैं। इस प्रकार यावत् स्तनितकुमार की वक्तव्यता । - ११०. भंते! इन पृथ्वीकायिकों के अनेक षट्क- समर्जित, अनेक षट्क- एक नोषट्क - समर्जित में कौन किनसे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ? - गौतम ! अनेक षट्क- समर्जित पृथ्वीकायिक सबसे अल्प हैं। अनेक षट्क- एक नोषट्क- समर्जित उनसे संख्येय-गुण हैं । इस प्रकार यावत् वनस्पतिकायिक की वक्तव्यता । द्वीन्द्रिय यावत् वैमानिकों की नैरयिक की भांति वक्तव्यता । १११. भंते! इन सिद्धों के षट्क- समर्जित, नोषट्क- समर्जित यावत् अनेक षट्क-एक- नोषट्क - समर्जित में कौन किनसे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ? गौतम ! अनेक-षट्क-एक नोषट्क समर्जित सिद्ध सबसे अल्प हैं, अनेक-षट्क-समर्जित उनसे संख्येय-गुण हैं, षट्क- नोषट्क- समर्जित उनसे संख्येय-गुण हैं, नोषट्क - समर्जित उनसे संख्येय-गुण हैं। द्वादश- समर्जित-आदि-पद ११२. भंते! क्या नैरयिक द्वादश- समर्जित हैं? नोद्वादश- समर्जित हैं ? द्वादश-नोद्वादश- समर्जित हैं ? अनेक द्वादश- समर्जित हैं ? अनेक द्वादश-नोद्वादश- समर्जित हैं ? गौतम ! नैरयिक द्वादश- समर्जित भी हैं यावत् अनेक द्वादश-नोद्वादश- समर्जित भी हैं । ११३. यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है यावत् अनेक- - द्वादश-नोद्वादश- समर्जित भी हैं ? गौतम ! जो नेरयिक द्वादश-प्रवेशनक से प्रवेश करते हैं, वे द्वादश- समर्जित हैं। जो नैरयिक जघन्यतः एक-, दो-, तीन- उत्कृष्टतः ग्यारह प्रवेशनक से प्रवेश करते हैं, वे नोद्वादश- समर्जित हैं। जो नैरयिक द्वादश-प्रवेशनक से प्रवेश करते हैं तथा अन्य जघन्यतः एक -, दो, तीन- उत्कृष्टतः ग्यारह - प्रवेशनक से प्रवेश करते हैं, वे द्वादश-नोद्वादश- समर्जित हैं। जो नैरयिक अनेक द्वादश-प्रवेशनक से प्रवेश करते हैं, वे अनेक द्वादश- समर्जित हैं। जो नैरयिक अनेक द्वादश- तथा जघन्यतः एक, दो, तीन- उत्कृष्टतः ग्यारह - प्रवेशनक से प्रवेश करते हैं, वे अनेक द्वादश-नोद्वादश- समर्जित हैं। इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है - यावत् अनेक - द्वादश-नोद्वादश- समर्जित भी हैं । ११४. पृथ्वीकायिकों की पृच्छा । गौतम ! पृथ्वीकायिक द्वादश- समर्जित नहीं हैं, नोद्वादश- समर्जित नहीं हैं, द्वादश-नोद्वादश- समर्जित नहीं हैं। अनेक द्वादश- समर्जित हैं, अनेक द्वादश-नोद्वादश- समर्जित भी हैं । ११५. यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है - यावत् अनेक - द्वादश-नोद्वादश- समर्जित भी हैं ? गौतम ! जो पृथ्वीकायिक अनेक - द्वादश-प्रवेशनक से प्रवेश करते हैं, वे द्वादश-समर्जित हैं। जो पृथ्वीकायिक अनेक द्वादश तथा अन्य जघन्यतः एक, दो, तीन- उत्कृष्टतः ग्यारह- प्रवेशनक से प्रवेश करते हैं, वे अनेक द्वादश-नोद्वादश- समर्जित हैं। इस अपेक्षा से यह ६९७
SR No.032417
Book TitleBhagwati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages590
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size15 MB
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