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________________ भगवती सूत्र श. २० : उ. ९,१० : सू. ८७-९४ द्वीप में आता ह, यहां आकर चैत्यों को वंदन करता है। गौतम ! जंघाचारण का ऊर्ध्व-गति-विषय इतना प्रज्ञप्त है । उस स्थान की आलोचना-प्रतिक्रमण किए बिना मृत्यु को प्राप्त होता है, उसके आराधना नहीं होती। उस स्थान की आलोचना-प्रतिक्रमण कर मृत्यु को प्राप्त होता है, उसके आराधना होती है । वह ऐसा ही है । यावत् विहरण करने लगे । दसवां उद्देशक ८८. भंते! वह ऐसा ही है। भंते! आयुष्य-पद ८९. भंते! क्या जीव सोपक्रम - आयुष्य वाले हैं, निरुपक्रम- आयुष्य वाले हैं ? गौतम! जीव सोपक्रम - आयुष्य वाले हैं, निरुपक्रम - आयुष्य वाले भी हैं । ९०. नैरयिकों की पृच्छा । गौतम ! नैरयिक सोपक्रम - आयुष्य वाले नहीं हैं, निरुपक्रम-आयुष्य वाले हैं। इस प्रकार यावत् स्तनितकुमार की वक्तव्यता । पृथ्वीकायिक की जीव की भांति वक्तव्यता । इस प्रकार यावत् मनुष्यों की वक्तव्यता । वाणमंतर, ज्योतिष्क और वैमानिक की नैरयिकों की भांति वक्तव्यता । ९१. भंते! नैरयिक क्या अपने उपक्रम से उपपन्न होते हैं ? पर - उपक्रम से उपपन्न होते हैं ? निरुपक्रम से उपपन्न होते हैं ? गौतम! अपने उपक्रम से भी उपपन्न होते हैं, पर - उपक्रम से भी उपपन्न होते हैं, निरुपक्रम से भी उपपन्न होते हैं। इस प्रकार यावत् वैमानिकों की वक्तव्यता । ९२. भंते! नैरयिक क्या अपने उपक्रम से उद्वर्तन करते हैं? पर - उपक्रम से उद्वर्तन करते हैं ? निरुपक्रम से उद्वर्तन करते हैं? गौतम! अपने उपक्रम से उद्वर्तन नहीं करते, पर-उपक्रम से उद्वर्तन नहीं करते, निरुपक्रम से उद्वर्तन करते हैं। इस प्रकार यावत् स्तनितकुमार की वक्तव्यता । पृथ्वीकायिक यावत् मनुष्य तीनों प्रकार से उद्वर्तन करते हैं। शेष की नैरयिक की भांति वक्तव्यता, इतना विशेष है - ज्योतिष्क, वैमानिक च्यवन करते हैं। ९३. भंते! क्या नैरयिक अपनी ऋद्धि से उपपन्न होते हैं ? पर ऋद्धि से उपपन्न होते हैं ? गौतम! अपनी ऋद्धि से उपपन्न होते हैं, पर ऋद्धि से उपपन्न नहीं होते। इस प्रकार यावत् वैमानिक की वक्तव्यता । ९४. भंते! नैरयिक अपनी ऋद्धि से उद्वर्तन करते हैं ? पर ऋद्धि से उद्वर्तन करते हैं ? गौतम! अपनी ऋद्धि से उद्वर्तन करते हैं, पर - ऋद्धि से उद्वर्तन नहीं करते। इस प्रकार यावत् वैमानिकों की वक्तव्यता, इतना विशेष अभिलाप है – ज्योतिष्क, वैमानिक च्यवन करते हैं । ६९४
SR No.032417
Book TitleBhagwati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages590
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size15 MB
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