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________________ श. २० : उ. १,२ : सू. ४-१० भगवती सूत्र चार, तीन अज्ञान की भजना, योग तीन । ५. भंते! उन जीवों के संज्ञा, प्रज्ञा, मन अथवा वचन होता है कि हम आहार कर रहे हैं? गौतम! कुछ जीवों के इस प्रकार की संज्ञा, प्रज्ञा, मन अथवा वचन होता है कि हम आहार कर रहे हैं। कुछ जीवों के इस प्रकार की संज्ञा, प्रज्ञा, मन अथवा वचन नहीं होता कि हम आहार कर रहे हैं किन्तु वे आहार करते हैं। ६. भंते! उन जीवों के इस प्रकार की संज्ञा यावत् वचन होता है कि हम इष्ट-अनिष्ट शब्द, इष्ट-अनिष्ट, रूप इष्ट-अनिष्ट गंध, इष्ट-अनिष्ट रस, इष्ट-अनिष्ट स्पर्श का प्रतिसंवेदन कर रहे हैं? गौतम! कुछ जीवों के इस प्रकार की संज्ञा यावत् वचन होता है कि हम इष्ट-अनिष्ट शब्द यावत् इष्ट-अनिष्ट स्पर्श का प्रतिसंवेदन कर रहे हैं। कुछ जीवों के इस प्रकार की संज्ञा यावत् वचन नहीं होता कि हम इष्ट-अनिष्ट शब्द यावत् इष्ट-अनिष्ट स्पर्श का प्रतिसंवेदन कर रहे हैं किन्तु वे प्रतिसंवेदन करते हैं। ७. भंते! क्या वे जीव प्राणातिपात में प्रवृत्त कहलाते हैं? पृच्छा। गौतम! कुछ जीव प्राणातिपात में प्रवृत्त कहलाते हैं यावत् मिथ्या-दर्शन-शल्य में प्रवृत्त कहलाते हैं। कुछ जीव प्राणातिपात में प्रवृत्त नहीं कहलाते, मृषावाद में यावत् मिथ्या-दर्शन-शल्य में प्रवृत्त नहीं कहलाते। वे जीव जिन जीवों की हिंसा में प्रवृत्त होते हैं, उन वध्यमान जीवों में भी कुछ जीवों को, ये जीव हमारे वधक हैं, इस प्रकार का नानात्व (वध्य-वधक-भाव का भेद) विज्ञात होता है, कुछ जीवों को यह नानात्व (वध्य-वधक-भाव का भेद) विज्ञात नहीं होता। उपपात सर्व दंडकों से होता है यावत् सर्वार्थसिद्ध तक से होता है। (पण्णवणा, ६/७०-८१, ८७-९८)। स्थिति-जघन्यतः अंतर्मुहूर्त, उत्कृष्टतः तैतीस सागरोपम। केवली-समुद्घात को छोड़कर छह समुद्घात। उद्वर्तना कर सर्वत्र जाते हैं, उत्पन्न होते हैं यावत् सर्वार्थसिद्ध तक। (सर्वार्थसिद्धि में संयत ही उत्पन्न होते हैं।) (पण्णवणा, ६/९३-१०२,१०५-११३) शेष द्वीन्द्रिय की भांति वक्तव्यता। ८. भंते! इन द्वीन्द्रिय-जीवों यावत् पंचेन्द्रिय-जीवों में कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक है? गौतम! सबसे अल्प पंचेन्द्रिय-जीव हैं। चतुरिन्द्रिय उससे विशेषाधिक हैं, त्रीन्द्रिय उससे विशेषाधिक हैं, द्वीन्द्रिय उससे विशेषाधिक हैं। ९. भंते! वह ऐसा ही है। भंते! वह ऐसा ही है। यावत् विहरण करने लगे। दूसरा उद्देशक अस्तिकाय-पद १०. भंते! आकाश कितने प्रकार का प्रज्ञप्त है? गौतम! आकाश दो प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसे–लोकाकाश और अलोकाकाश । ६७४
SR No.032417
Book TitleBhagwati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages590
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size15 MB
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