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________________ श. १९ : उ. ४,५ : सू. ५०-६१ भगवती सूत्र यह अर्थ संगत नहीं है। ५१. भंते ! नैरयिक अल्पआस्रव, अल्पक्रिया, महावेदना और अल्पनिर्जरा वाले हैं? यह अर्थ संगत नहीं है। ५२. भंते! नैरयिक अल्पआसव, अल्पक्रिया, अल्पवेदना और महानिर्जरा वाले हैं? यह अर्थ संगत नहीं है। ५३. भंते! नैरयिक अल्पआसव, अल्पक्रिया, अल्पवेदना और अल्पनिर्जरा वाले हैं? यह अर्थ संगत नहीं है। ये सोलह भंग हैं। ५४. भंते! असुरकुमार महाआसव, महाक्रिया, महावेदना और महानिर्जरा वाले हैं? यह अर्थ संगत नहीं है। इस प्रकार चौथा भंग वक्तव्य है, शेष पंद्रह भंग वर्जनीय हैं। इस प्रकार यावत् स्तनितकुमार की वक्तव्यता। ५५. भंते! पृथ्वीकायिक महाआसव, महाक्रिया, महावेदना और महानिर्जरा वाले हैं? हां हैं। इसी प्रकार यावत्५६. भंते! पृथ्वीकायिक अल्पआस्रव, अल्पक्रिया, अल्पवेदना और अल्पनिर्जरा वाले हैं? हां, है। इसी प्रकार यावत् मनुष्यों की वक्तव्यता। वाणमंतर, ज्योतिष्क, वैमानिक की असुरकुमार की भांति वक्तव्यता। ५७. भंते! वह ऐसा ही है। भंते! वह ऐसा ही है। पांचवां उद्देशक चरम-परम-पद ५८. भंते! नैरयिक चरम भी हैं? नैरयिक परम भी हैं? हां, हैं। ५९. भंते! चरम नैरयिकों से परम नैरयिक महाकर्मतर, महाक्रियातर, महाआश्रवतर, महावेदनतर हैं? परम नैरयिकों से चरम नैरयिक अल्पकर्मतर, अल्पक्रियातर, अल्पआस्रवतर और अल्पवेदनतर हैं? हां, गौतम! चरम नैरयिकों से परम नैरयिक यावत् महावेदनतर हैं। परम नैरयिकों से चरम नैरयिक यावत् अल्पवेदनतर हैं। ६०. भंते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है यावत् अल्पवेदनतर हैं? गौतम! स्थिति की अपेक्षा से। गौतम! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है यावत् अल्पवेदनतर हैं। ६१. भंते! असुरकुमार चरम भी हैं? असुरकुमार परम भी हैं? पूर्ववत्। इतना विशेष है-कर्म के विषय में असुरकुमारों की वक्तव्यता नैरयिकों की वक्तव्यता से विपरीत हैं-परम अल्पकर्म वाले हैं और चरम महाकर्म वाले हैं। शेष पूर्ववत् ६६६
SR No.032417
Book TitleBhagwati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages590
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size15 MB
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