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________________ भगवती सूत्र श. १६ : उ. ६ : सू. ९६-१९०५ को मानता है । वह उसी क्षण जागृत हो जाए तो दूसरे भव-ग्रहण में सिद्ध होता है यावत् सब दुःखों का अंत करता है । ९७. स्त्री अथवा पुरुष स्वप्न के अंत में एक महान् हिरण्य - राशि, स्वर्ण-राशि, रजत - राशि, वज्र - राशि को देखता हुआ देखता है, उस पर चढता हुआ चढता है। मैं चढ गया हूं, ऐसा स्वयं को मानता है । वह उसी क्षण जागृत हो जाए तो उसी भव-ग्रहण में सिद्ध होता है यावत् सब दुःखों का अंत करता है । ९८. स्त्री अथवा पुरुष स्वप्न के अंत में एक महान् तृण के ढेर, काठ ढेर, पत्तों के ढेर, छाल के ढेर, तुष के ढेर, भूसे के ढेर, गोमय (गोबर) के ढेर, अकूरडी के ढेर को देखता हुआ देखता है, उसे बिखेरता हुआ बिखेरता है, मैंने बिखेर दिया है, ऐसा स्वयं को मानता है, वह उसी क्षण जागृत हो जाए तो उसी भव-ग्रहण में सिद्ध यावत् सब दुःखों का अंत करता है। ९९. स्त्री अथवा पुरुष स्वप्न के अंत में एक महान् शरकंडे के स्तम्भ, वीरण के स्तम्भ, वंशीमूल के स्तम्भ, वल्लीमूल के स्तम्भ को देखता हुआ देखता है, उन्मूलन करता हुआ उन्मूलन करता है, मैंने उन्मूलन कर दिया है, ऐसा स्वयं को मानता है । वह उसी क्षण जागृत हो जाए तो उसी भव-ग्रहण में सिद्ध यावत् सब दुःखों का अंत करता 1 १००. स्त्री अथवा पुरुष स्वप्न के अंत में क्षीर-कुंभ, दधि-कुंभ, घृत- कुंभ, मधु-कुंभ को देखता हुआ देखता है, उठाता हुआ उठाता है, मैंने उठाया है, ऐसा स्वयं को मानता है । वह उसी क्षण जागृत हो जाए तो उसी भव-ग्रहण में सिद्ध यावत् सब दुःखों का अंत करता है । १०१. स्त्री अथवा पुरुष स्वप्न के अन्त में एक महान् मदिरा से आकीर्ण कुंभ, कांजी के जल से आकीर्ण-कुंभ, तेल- कुंभ, वसा-कुंभ को देखता हुआ देखता है, भेदन करता हुआ भेदन करता है। मैंने भेदन कर दिया, ऐसा स्वयं को मानता है । वह उसी क्षण जागृत हो जाए तो दूसरे भव-ग्रहण में सिद्ध होता है यावत् सब दुःखों का अंत करता है । १०२. स्त्री अथवा पुरुष स्वप्न के अंत में एक महान् कुसुमित पद्म-सरोवर को देखता हुआ देखता है, अवगाहन करता हुआ अवगाहन करता है, मैंने अवगाहन कर लिया, ऐसा स्वयं को मानता है । वह उसी क्षण जागृत हो जाए तो उसी भव-ग्रहण में सिद्ध होता है यावत् सब दुःखों का अंत करता है । १०३. स्त्री अथवा पुरुष स्वप्न के अंत में एक हजारों ऊर्मियों और तरंगों से युक्त एक महान् समुद्र को देखता हुआ देखता है, तरता हुआ तरता है, तर गया, ऐसा स्वयं को मानता है । वह उसी क्षण जागृत हो जाए तो उसी भव-ग्रहण में सिद्ध होता है यावत् सब दुःखों का अंत करता है। १०४. स्त्री अथवा पुरुष स्वप्न के अंत में एक महान् रत्नमय मकान को देखता हुआ देखता है, अनुप्रवेश करता हुआ अनुप्रवेश करता है, मैं अनुप्रविष्ट हो चुका हूं, ऐसा स्वयं को मानता है । वह उसी क्षण जागृत हो जाए तो उसी भव-ग्रहण में सिद्ध होता है यावत् सब दुःखों का अत करता है। १०५. स्त्री अथवा पुरुष स्वप्न के अंत में एक महान् सर्वरत्नमय विमान को देखता हुआ देखता ६०७
SR No.032417
Book TitleBhagwati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages590
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size15 MB
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