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________________ भगवती सूत्र श. १५ : सू. १३-१९ प्रकार का आख्यान, भाषण, प्रज्ञापन और प्ररूपण करते हैं देवानुप्रिय! मंखलिपुत्र गोशाल जिन होकर जिन-प्रलापी यावत् जिन होकर अपने आपको जिन शब्द से प्रकाशित करता हुआ विहार कर रहा है। भंते! क्या यह ऐसा ही है? भंते! मैं चाहता हूं आप मंखलिपुत्र गोशाल के जन्म से लेकर अब तक का चारित्र कहें। १४. अयि गौतम! श्रमण भगवान् महावीर ने भगवान् गौतम को इस प्रकार कहा-गौतम! जो ये अनेक व्यक्ति परस्पर इस प्रकार आख्यान, भाषण, प्रज्ञापन और प्ररूपण करते हैं मंखलिपुत्र गोशाल, जिन होकर जिन-प्रलापी यावत् जिन होकर अपने आपको जिन शब्द से प्रकाशित करता हुआ विहार कर रहा है वह मिथ्या है। गौतम! मैं इस प्रकार आख्यान यावत् प्ररूपण करता हूं-इस मंखलिपुत्र गोशाल के पिता का नाम मंखलि था। उसकी जाति मंख थी। उस मंखलि मंख के भद्रा नाम की भार्या थी-सुकुमार हाथ-पैर वाली यावत् प्रतिरूपा। वह भद्रा भार्या किसी दिन गर्भवती हुई। १५. उस काल और उस समय में 'सरवण' नाम का सन्निवेश था-ऐश्वर्यशाली, शान्त और समृद्ध यावत् नंदनवन के समान प्रभा वाला, चित्त को प्रसन्न करने वाला, दर्शनीय, कमनीय और रमणीय। उस सरवण सन्निवेश में गोबहुल नाम का ब्राह्मण रहता था वह समृद्ध यावत् बहुजनों के द्वारा अपरिभूत था, ऋग्वेद यावत् अनेक ब्राह्मण और परिव्राजक-संबंधी नयों में निष्णात था। उस गोबहल ब्राह्मण के गौशाला भी थी। १६. मंखली मंख ने एक दिन गर्भवती भार्या भद्रा के साथ प्रस्थान किया। वह चित्रफलक हाथ में लेकर मंखत्व (भिक्षुत्व वृत्ति) के द्वारा अपना जीवन-यापन करता हुआ, क्रमानुसार विचरण तथा ग्रामानुग्राम परिव्रजन करता हुआ, जहां सरवण सन्निवेश था, जहां गोबहुल ब्राह्मण की गौशाला थी वहां आया, आकर गोबहुल ब्राह्मण का गौशाला के एक भाग में भांड का निक्षेप किया, निक्षेप कर सरवण सन्निवेश के उच्च, नीच तथा मध्यम कुलों में सामुदानिक भिक्षा के लिए घूमते हुए चारों ओर आवास-योग्य स्थान की मार्गणा-गवेषणा करते हुए, आवास-योग्य स्थान के न मिलने पर उसी गोबहुल ब्राह्मण की गौशाला के एक भाग में वर्षावास किया। १७. भद्रा भार्या ने बहु प्रतिपूर्ण नव मास साढे सात दिन-रात बीत जाने पर सुकुमार हाथ-पैर वाले यावत् प्रतिरूप पुत्र को जन्म दिया। १८. उस पुत्र के माता-पिता ग्यारह दिन बीत जाने पर अशुचिजात कर्म से निवृत्त हुए। बारहवें दिन इस प्रकार का गुण-युक्त गुण-निष्पन्न नामकरण किया क्योंकि हमारा यह बालक गोबहुल ब्राह्मण की गौशाला में उत्पन्न हुआ है इसलिए इस बालक का नाम 'गोशाल -गोशाल' ऐसा हो। तब उसके माता-पिता ने उस बालक का नाम गोशाल किया। १९. उस बालक गोशाल ने बाल-अवस्था को पारकर, विज्ञ और कला का पारगामी बन कर यौवन को प्राप्त किया। स्वयं स्वतंत्र रूप से चित्रफलक का निर्माण किया, निर्माण कर वह चित्रफलक को हाथों में लेकर मंखत्व-वृत्ति के द्वारा अपना जीवन-यापन करता हुआ विचरण करने लगा। ५४९
SR No.032417
Book TitleBhagwati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages590
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size15 MB
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