SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 109
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवती सूत्र श. १४ : उ. ३,४ : सू. ३९-४५ होकर जाकर पश्चात् शस्त्र से प्रहार नहीं करता। इस प्रकार इस अभिलाप के अनुसार जैसे दसवें शतक (भ. १०/२४-३०) में आत्म-ऋद्धि उद्देशक, वैसे चारों दण्डक निरवशेष वक्तव्य हैं, यावत् महान्-ऋद्धि वाली वैमानिक-देवी अल्प-ऋद्धि वाली वैमानिक-देवी का __ शस्त्र से प्रहार कर जाने में भी समर्थ है। नैरयिक-नैरयिकों का प्रत्यनुभव-पद ४०. भंते! रत्नप्रभा-पृथ्वी के नैरयिक किस प्रकार के पुद्गल-परिणाम का प्रत्यनुभव करते हुए विहरण करते हैं? गौतम! अकांत, अप्रिय, अशुभ, अमनोज्ञ और अमनोहर। इसी प्रकार यावत् अधःसप्तमी-पृथ्वी के नैरयिकों की वक्तव्यता। ४१. भंते ! रत्नप्रभा-पृथ्वी के नैरयिक किस प्रकार के वेदना-परिणाम का प्रत्यनुभव करते हुए विहरण करते हैं? गौतम! अनिष्ट यावत् अमनोहर। इस प्रकार जैसे जीवाजीवाभिगम के द्वितीय नैरयिक उद्देशक (३/१२८) में यावत्४२. भंते! अधःसप्तमी-पृथ्वी के नैरयिक किस प्रकार के परिग्रह-संज्ञा-परिणाम का प्रत्यनुभव करते हुए विहरण करते हैं? गौतम! अनिष्ट यावत् अमनोहर । ४३. भंते! वह ऐसा ही है। भते! वह ऐसा ही है। चौथा उद्देशक पुद्गल-जीव-परिणाम-पद ४४. भंते! यह पुद्गल अनंत और शाश्वत अतीत में किसी एक समय रूक्ष होता है? किसी एक समय अरूक्ष (स्निग्ध) होता है? किसी एक समय रूक्ष अथवा अरूक्ष होता है? पूर्व में जो एक-वर्ण आदि परिणाम वाला है, वह करण के द्वारा अनेक-वर्ण, अनेक-रूप-परिणाम का परिणमन करता है? वह परिणाम निर्जीर्ण होता है, उसके पश्चात् वह एक-वर्ण, एक-रूप हो जाता है? हां गौतम! यह पुद्गल अनंत और शाश्वत अतीत में किसी एक समय रूक्ष होता है, किसी एक समय अरूक्ष (स्निग्ध) होता है। किसी एक समय रूक्ष अथवा अरूक्ष होता है। पूर्व में जो एक-वर्ण आदि परिणाम वाला है, वह करण के द्वारा अनेक-वर्ण, अनेक-रूप आदि परिणाम का परिणमन करता है। वह परिणाम निर्जीर्ण होता है, उसके पश्चात् एक-वर्ण, एक-रूप हो जाता है। ४५. भंते! पुद्गल शाश्वत वर्तमान में किसी एक समय रूक्ष होता है? पूर्ववत्। ५२७
SR No.032417
Book TitleBhagwati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages590
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy