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________________ श. १४ : उ. १ : सू. ३-८ भगवती सूत्र गौतम! जैसे कोई पुरुष तरुण, बलवान्, युगवान्, युवा, स्वस्थ और सधे हुए हाथों वाला है, उसके हाथ, पांव, पार्श्व, पृष्ठान्तर और उरु दृढ तथा विकसित हैं। सम श्रेणी में स्थित दो ताल वृक्ष और परिघा के समान जिसकी भुजाएं हैं। चर्मेष्टक, पाषाण, मुद्गर और मुट्ठी के प्रयोगों से जिसके शरीर के पुढे आदि सुदृढ हैं। जो आंतरिक उत्साह बल से युक्त है। लंघन, प्लवन, धावन और व्यायाम करने में समर्थ है। छेक, दक्ष, प्राप्तार्थ, कुशल, मेधावी, निपुण और सूक्ष्म शिल्प से समन्वित है। वह पुरुष संकुचित भुजा को फैलाता है, फैलाई हुई भुजा को संकुचित करता है। खुली मुट्ठी को बंद करता है, बंद मुट्ठी को खोलता है। खुली आंखों को बंद करता है, बंद आंखों को खोलता है। क्या नैरयिकों का गति-काल इतनी शीघ्रता से होता है? यह अर्थ संगत नहीं है। नैरयिक एक समय, दो समय अथवा तीन समय वाली विग्रह-गति से उपपन्न हो जाते हैं। गौतम ! नैरयिकों के वैसी शीघ्र गति, वैसा शीघ्र गति-काल प्रज्ञप्त है। इस प्रकार यावत् वैमानिक, इतना विशेष है-एकेन्द्रियों के चार समय वाली विग्रह-गति वक्तव्य है, शेष पूर्ववत्। नैरयिक का अनंतर-उपपन्नक-आदि-पद ४. भंते! क्या नैरयिक अनंतर-उपपन्नक हैं? परंपर-उपपन्नक हैं? अनंतर-परंपर-अनुपपन्नक हैं? गौतम! नैरयिक अनंतर-उपपन्नक भी हैं, परंपर-उपपन्नक भी हैं, अनंतर-परंपर-अनुपपन्नक भी ५. भंते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है-नैरयिक अनंतर-उपपन्नक भी हैं, परंपर-उपपन्नक भी हैं, अनंतर-परंपर-अनुपपन्नक भी हैं? गौतम! जो नैरयिक प्रथम-समय-उपपन्नक हैं, वे नैरयिक अनंतर-उपपन्नक हैं। जो नैरयिक अप्रथमसमय उपपन्नक हैं, वे नैरयिक परंपर-उपपन्नक हैं। जो नैरयिक विग्रह-गति–अंतराल-गति में समापन्नक हैं, वे नैरयिक अनंतर-परंपर-अनुपपन्नक हैं। इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है यावत् अनंतर-परंपर-अनुपपन्नक भी हैं। इसी प्रकार निरंतर यावत् वैमानिक । ६. भंते! अनंतर-उपपन्नक नैरयिक क्या नैरयिक आयुष्य का बंध करते हैं? क्या तिर्यंच-, -मनुष्य- और देव-आयुष्य का बंध करते हैं? गौतम! न नैरयिक-आयुष्य का बंध करते हैं, यावत् न देव-आयुष्य का बंध करते हैं। ७. भंते! परंपर-उपपन्नक-नैरयिक क्या नैरयिक-आयुष्य का बंध करते हैं यावत् देव-आयुष्य का बंध करते हैं? गौतम! नैरयिक-आयुष्य का बंध नहीं करते, तिर्यग्योनिक-आयुष्य का बंध करते हैं, मनुष्य -आयुष्य का भी बंध करते हैं, देव-आयुष्य का बंध नहीं करते। ८. भंते! अनन्तर-परंपर-अनुपन्नक क्या नैरयिक-आयुष्य का बंध करते हैं-पृच्छा। गौतम! नैरयिक-आयुष्य का बंध नहीं करते यावत् देव-आयुष्य का बंध नहीं करते। इसी प्रकार यावत् वैमानिक की वक्तव्यता। इतना विशेष है-परंपर-उपपन्नक-पंचेन्द्रिय ५२२
SR No.032417
Book TitleBhagwati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages590
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size15 MB
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