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________________ भगवती सूत्र श. १३ : उ. ९: सू. १५१-१६३ चमड़े से गुंथी हुई खाट, ऊनी कंबल, इसी प्रकार लोह-भार, ताम्र-भार, पीतल-भार, शीशक - भार, हिरण्य-भार, स्वर्ण-भार, वज्र - भार । १५२. जैसे कोई वल्गुलिका ( चमगादड़ ) होती है, वह दोनों पैरों को लटका कर ऊर्ध्व पैर और अधः शिर स्थित होती है, इसी प्रकार भावितात्मा अनगार भी स्वयं वल्गुलिका - कृत्यागत होकर ऊपर आकाश में उड़ता है ? इस प्रकार यज्ञोपवीत (भगवई, ३ / २०३) की वक्तव्यता कथनीय है यावत् विक्रिया करेगा । १५३. जैसे कोई जोंक होती है, वह पानी में शरीर को उछाल-उछाल कर चलती है, इसी प्रकार अनगार भी। शेष वल्गुलिका की भांति वक्तव्यता । १५४. जैसे कोई बबीला पक्षी होता है, वह दोनों पैरों को एक साथ तुल्य रेखा में उठाता हुआ, उठाता हुआ चलता है, इसी प्रकार भावितात्मा अनगार भी, शेष पूर्ववत् । १५५. जैसे कोई विराल पक्षी (बड़ी चमगादड़ ) होता है, वह एक वृक्ष से दूसरे वृक्ष पर कूदता हुआ चलता है, इसी प्रकार भावितात्मा अनगार भी । शेष पूर्ववत् । १५६. जैसे कोई चकोर पक्षी होता है, वह दोनों पैरों को एक साथ तुल्य रेखा में उठाता हुआ, उठाता हुआ चलता है, इसी प्रकार भावितात्मा अनगार भी । शेष पूर्ववत् । १५७. जैसे कोई हंस होता है, वह एक तट से दूसरे तट पर क्रीड़ा करता हुआ, क्रीड़ा करता हुआ चलता है, इसी प्रकार भावितात्मा अनगार स्वयं हंस- कृत्यागत होकर क्रीड़ा करता है, पूर्ववत् । १५८. जैसे कोई समुद्र - काक होता है, वह एक तरंग से दूसरी तरंग पर कूदता हुआ, कूदता हुआ चलता है, इसी प्रकार भावितात्मा अनगार भी, तथावत् । १५९. जैसे कोई पुरुष चक्र को ग्रहण कर चलता है, इसी प्रकार भावितात्मा अनगार स्वयं चक्र हाथ में ले, कृत्यागत होकर चलता । शेष रज्जु से बंधी घटिका की भांति वक्तव्यता । इसी प्रकार छत्र, इसी प्रकार चर्म की वक्तव्यता । १६०. जैसे कोई पुरुष रत्न को ग्रहण कर चलता है, इसी प्रकार भावितात्मा अनगार भी । इसी प्रकार वज्र, वैडूर्य यावत् अरिष्ट । इसी प्रकार उत्पल - हस्तक, इसी प्रकार पद्म - हस्तक, कुमुद - - हस्तक, नलिन हस्तक, सुभग- हस्तक, सौगंधिक हस्तक, पौण्डरिक - - हस्तक, महापोण्डरिक-हस्तक, शतपत्र हस्तक । जैसे कोई पुरुष सहस्र - पत्रक ग्रहण कर चलता है, इसी प्रकार भावितात्मा अनगार भी । १६१. जैसे कोई पुरुष नाल-तंतु को विदीर्ण कर, विदीर्ण कर चलता है, इसी प्रकार भावितात्मा अनगार भी स्वयं नाल- तंतु- कृत्यागत होकर चलता है । पूर्ववत् । १६२. जैसे कोई कमलिनी होती है वह पानी में उन्मज्जन कर ( डुबकी लगा कर ) उन्मज्जन कर ठहरती है, इसी प्रकार भावितात्मा अनगार भी । शेष वल्गुलिका की भांति वक्तव्यता । १६३. जैसे कोई वनषंड होता है-कृष्ण, कृष्ण अवभास वाला यावत् काली कजरारी घटा के समान चित्त को प्रसन्न करने वाला, दर्शनीय, कमनीय और रमणीय, इसी प्रकार भावितात्मा ५१९
SR No.032417
Book TitleBhagwati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages590
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size15 MB
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