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अनुकम्पा री चौपई
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३२. देवता स्थान-स्थान पर अचित्त पानी के कुंड भरकर रख सकते हैं और स्थान-स्थान पर विविध प्रकार के भोजन के ढ़ेर लगा सकते हैं।
३३. चारों प्रकार का अचित्त आहार निष्पन्न कर देने से यदि धर्म और पुण्य होता हो तथा जीवों को बचाने में धर्म होता हो तो समदृष्टि देवता यही काम करते ।
३४. देवता यदि मनुष्यों को खाना देने लगे तो खेती करने का आरंभ टल जाए और यदि देवता आभूषण, वस्त्र देने लग जाए तो बहुत सारे जीव मरने से
बच जाए ।
३५. घर, दुकान, हवेली, महल आदि भी यदि देवता निर्मित कर दे तो अनंत जीव मरने से बच जाए ।
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३६. उन देव निर्मित मकानों को छाना और नीपना भी नहीं पड़ता है । वे तो सुन्दर एवं शोभायुक्त होते हैं और देवताओं के लिए उनको बनाना भी बहुत सरल है।
३७. ऐसी क्रिया करने से यदि धर्म होता हो तो देवता विलम्ब नहीं करते। इस क्रिया से कर्म काटकर अपना काम सिद्ध कर लेते।
३८. दान देने से और जीव बचाने से यदि कर्मों का क्षय होता हो तो दान देकर और जीव बचाकर देवता भी मोक्ष चले जाते ।
३९. दूसरों को देने में पुण्य होता हो तो देवता के पुण्यों का ढेर लग जाए और जीव बचाने में यदि धर्म होता तो देवता भी कर्म काटकर मोक्ष चले जाते ।
४०. असंयति जीवों का जीवन प्रत्यक्ष सावद्य (पापमय) है। उन्हें जो दिया जाता है, वह सावद्य दान है। उसमें अंशमात्र भी धर्म नहीं है।
४१. धर्म होता हो तो सब मनुष्यों के लिए रत्न जटित महल बना दिए जाते । ये बस बहुत थोड़े में हो जाते, क्योंकि देवता के लिए ये सब आसान कार्य होते हैं।