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दूहा
१. दोय उपगार श्री जिण भाखीया, त्यांरो बुधवंत करजों विचार।
तिणमें एक उपगार , मोख रों, बीजों संसार नो उपगार॥
२. उपगार करें कोई मोख रों, तिणरी जिण आगना दे आप।
उपगार करें संसार नों, तिहां आप रहें चुपचाप॥
३. उपगार करें कोइ मोक्ष रो, तिणनें निश्चेंइ धर्म साख्यात।
उपगार करें संसार नों, तिणमें धर्म नही तिलमात॥
४. दोनूं उपगार 2 जू जूआ, ते कठेइ न खाओं मेल।
पिण मिश्र पाखंड्यां परूप में, कर दीयो भेल सभेल॥
कुण कुण उपगार छे मोख रों, कुण-कुण संसार ना उपगार। त्यांरा भाव भेद परगट करूं, ते सुणजों विसतार॥
ढाल : ११
. (लय - आ अणुकंपा जिण आज्ञा में.....)
ओं तो उपगार निश्चेंइ मुगत रो॥ १. गिनांन दर्शण चारित ने वले तप,
यांच्यांरा रो कोइ करें उपगार। तिणनें निश्चेंइ निरजरा धर्म कह्यों जिण,
वले श्री जिण आगना , श्रीकार।