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________________ अनुकम्पा री चौपई २९१ ३३. जा छहकाय को मारने में धर्म बतलाते हैं, उनकी श्रद्धा अत्यन्त विपरीत है। वे अज्ञानी मोह और मिथ्यात्व में जकड़े हैं। इसलिए उन्हें सम्यक् श्रद्धा दिखाई नहीं देती। ३४. उन्हें पूछने पर वे कहते हैं, हम दयाधर्मी हैं, परन्तु वे निश्चय में छहकाय के हिंसक हैं। उन हिंसाधर्मियों को यदि कोई साधु मानता है, वह भी निश्चय में मिथ्यात्वी है। ३५. कोई कहते हैं-साधु जीव बचाते हैं, जीव की रक्षा करते हैं, दूसरों से रक्षा करवाते हैं और रक्षा करने वालों को अच्छा समझते है, जो इस प्रकार की चर्चाएं करते हैं-वे जैन धर्म के अजानकार, अज्ञानी हैं। ३६. साधु जीवों को क्यों बचाए? जब कि जीव तो अपने अपने कर्मों के अनुसार सुख-दुःख पाते हैं। कोई आकर साधु की संगति करे तो वे उसे जैन धर्म सिखा देते हैं। ३७. साधु छहकाय के शस्त्र अव्रती जीवों के जीने मरने की कामना नहीं करते हैं। यदि वे उनके जीने मरने की वांछा साधु करे तो राग और द्वेष दोनों की प्रवृत्ति होगी। ३८. छहकाय के शस्त्र अव्रती जीवों का जीना एवं मरना दोनों ही बुरे हैं। जिसने जीवों को मारने का त्याग किया, उसमें दया का महान गुण है। ३९. असंयमी जीवन एवं बालमरण इन दोनों की वांछा नहीं करनी चाहिए। पंडित मरण और संयमी जीवन की वांछा करनी चाहिए। ४०. अव्रती जीव छहकाय के शस्त्र हैं। उनके जीवन को असंयमी जीवन समझना चाहिए। जिन्होंने सब सावध योग का त्याग किया है, उनका जीवन संयमी जीवन पहचानें। ४१. साधु तीन करण, तीन योग से षट्कायिक जीवों के रक्षक हैं। वे उनके प्रति निरन्तर दया भाव रखते हैं। वे षट्काय के रक्षक साधु षट्काय को मारने में धर्म किस आधार से कहें?
SR No.032415
Book TitleAcharya Bhikshu Tattva Sahitya 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Ganadhipati, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Sukhlal Muni, Kirtikumar Muni, Shreechan
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2011
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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