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________________ २१७ अनुकम्पा री चौपई २३. भगवान को कष्ट देते हुए देखकर किसी ने भी आकर उन्हें अलग नहीं किया। सम्यग्दृष्टि देव भी बहुत थे, उन्होंने करुणा क्यों नहीं दिखाई?। २४. देवताओं ने जाना, भगवान महावीर के अभी कर्मोदय है। अनुकंपा करके बीच में पड़ना-यह जिनभाषित धर्म नहीं है। २५. यदि धर्म होता तो भगवान महावीर को दुःखी-कष्ट में देखकर वे थोड़ा भी विलम्ब नहीं करते। देव परिषह देने वालों को खींचकर अलग कर देते। २६. सभी द्वीप समुद्रों में मच्छ गलागल हो रही है अर्थात् एक जीव दूसरे जीव को खा रहा है। भगवान यदि यह इन्द्र से कह दे तो उसे थोड़े में ही मिटाया जा सकता है। २७. यदि ऐसा करने से उन जीवों के आहार की अन्तराय हो तो इन्द्र के पास ऐसी बहुत शक्तियां हैं, उन्हें भरपूर अचित्त आहार खिला देता पर ऐसा करने से कर्म दूर नहीं होते। २८. चूलनीपिता श्रावक को पोषध में आकर देवता ने कष्ट दिए। उसने क्याक्या घटित किया, वह ध्यान देकर सुनो। २९. चूलनीपिता के सामने लाकर उसके तीन पुत्रों के तीन-तीन करके नौ टुकड़े किए। उन्हें गर्म तेल में तला। उस गर्म तेल से चूलनीपिता के शरीर को भी छांटा। ३०. चूलनीपिता ने अपने संचित कर्मों का फल जानकर समतामय परिणामों से वेदना को सहन किया। उसने अपने पुत्रों की अनुकंपा नहीं की और जिनधर्म को भी नहीं छोड़ा। ३१. मत मारो, यह भी नहीं कहा, क्योंकि यह तो सावध भाषा है। पुत्रों को मरते देखकर भी उसने करुणा नहीं की। धर्म ध्यान करने में सुदृढ़ रहा।
SR No.032415
Book TitleAcharya Bhikshu Tattva Sahitya 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Ganadhipati, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Sukhlal Muni, Kirtikumar Muni, Shreechan
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2011
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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