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________________ ५५ भरत चरित 1 २. जाम्बूनद के पीले सोने की उसकी धार है । उसकी भीतरी परिधि में भांतिभांति के मणिरत्न लगे हुए हैं । ३. चंद्रकांत आदि मणिरत्नों से चतुराई से जालियां की गई हैं । जालियों को मोतियों से कुशलतापूर्वक सजाया गया है। ४. भंभा, भेरी, मृदंग आदि बारह वाद्ययंत्र एक साथ समुचित रूप से बज रहे हैं। उनकी प्रतिध्वनि हो रही है । ५. उनके साथ छोटी-छोटी घुंघरियां भी बज रही हैं। उनकी मधुर ध्वनि अत्यंत सुहावनी लग रही है । ६. नवोदित सूर्य के मंडल की तरह वह गोलाकार एवं तेजस्वी है। ७. . विभिन्न प्रकार के मणिरत्नों में अनेक घंटियों से घिरा हुआ है। उनकी ध्वनि अत्यंत मधुर है। ८. स्थान-स्थान पर सभी ऋतुओं के सुगंधित फूलों की माला तथा गुलदस्ते लहरा रहे हैं । ९. वह आकाश में निरालंब ऐसा लग रहा है जैसे कोई दूसरा सूर्य ही चमक रहा है । वह हजार देवताओं से अधिष्ठित है । १०. प्रधान वाद्ययंत्र बज रहे हैं। उनसे तेज तथा मंद स्वरों की श्रीकार धुन निकल रही है । ११. वह स्वर आकाश में व्याप्त हो गया। उससे आकाश ही गूंजने लगा । भरत महाराज सुदर्शन चक्ररत्न के स्वामी हैं । १२. इस प्रकार का मनोहारी चक्ररत्न गुणों से पूर्ण और दोषरहित है । भरतजी अंत में उसे भी असार समझकर छोड़ देंगे तथा अविचल मोक्ष में जाएंगे।
SR No.032414
Book TitleAcharya Bhikshu Aakhyan Sahitya 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Ganadhipati, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Sukhlal Muni, Kirtikumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2011
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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