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________________ ४८ भिक्षु वाङ्मय-खण्ड-१० ४. निरमल पातला में स्वेत उजला ए, रूपा में चावल तांहि। तिणसूं चक्र आगलें ए, आठ मंगलीक आलेखों राय।। ५. साथीयो ने श्रीवछसाथीयो ए, नंदावर्त्त साथीयो बखांण। वरधमांन साथीयो ए, पांचमों भद्रासण जाण।। ६. मछ कलस आरीसो आठमों ए, ए आठोइ आलेख्या मंगलीक। वळे उपचार पूजा करें ए, ते सुणजो राखे चित्त ठीक।। ७. फूल पाडल में मालती तणा ए, वळे चंपा में आसोग फूल जांण। पुणाग अंब मंजरी ए, नवमालती फूल बखांण।। ८. धोबो भर भर फूल विखेरीया ए, चक्ररत्न रे चोफेर। पंचवर्णा फूलां तणा ए, जांणू प्रमाणे कीया ढेर।। ९. चंदप्रभ वैडूरज रत्न में ए, कुडछा तणो डंड जांण। कंचण मणी रत्न री ए, तिणरें भ्रांत चित्रांम वखांण।। १०. कुडछो वैडूरज रत्न में ए, तिणमें घाल्यों किस्नागर धूप। सुगंध तिणरो घणो ए, वळे सेहलारस धूप अनूप।। ११. इत्यादिक जात त्यांरी वासावली अनेक ए, रा ए, धूपणो उखेव्यो राजांन। हुइ , मघमघायमांन।। १२. सात आठ पग पाछों आयनें ए, हेठों बेठों , तिणवार। आगे कीयो तिण विधे ए, तीन वार कीयो नमसकार।। १३. नमसकार करे चक्ररत्न में ए, नीकल्यों आउधसाला बार। उवठाण साला आयनें ए, बेंठो सिघासण मझार।। १४. अठारेंश्रेण प्रश्रेणी बोलायनें अठाही महोछव करों ए, ए, बोल्या भरतजी आंम। चक्ररत्न रा ठाम ठांम।।
SR No.032414
Book TitleAcharya Bhikshu Aakhyan Sahitya 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Ganadhipati, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Sukhlal Muni, Kirtikumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2011
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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