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________________ भरत चरित ३७ २. मूल्य में महंगे, पर तोल में अत्यंत हल्के, निर्दोष वस्त्ररत्न को उन्होंने सुघड़ रूप से धारण किया । ३. पंचरंगी शुचि, पवित्र फूलमाला पहनी तथा अपने शरीर को रंग-बिरंगे वणग विलेपन से अलंकृत किया। ४. स्वर्ण तथा मणियों के आभूषणों से यथास्थान अंगों को अलंकृत किया। हार, अर्द्धहार तथा त्रिसर गले में पहने। ५. कटि भाग पर कणदोरा तथा लंबा झुमका लहरा रहा है । मस्तक के केश अत्यंत ललित, सुकुमाल और महक रहे हैं। ६. विविध मणि-रत्नों वाले कड़े दोनों हाथों में पहने । बाहों में भुजबंध पहने जिससे वे स्थिर हो गईं। ७. आभा मंडल को उद्योतित करने के लिए कानों में कुंडल और मस्तक पर प्रदीप्त मुकुट पहना । जगमग ज्योति-सी जलने लगी । ८. हार से अपने हृदय को सुशोभन रूप से ढंका और एक पट वस्त्र को चतुराई से उत्तरासंग के रूप में धारण किया । ९. पांचों अंगुलियां मुद्रिकाओं से पीत दीखने लगीं। अनेक प्रकार के आभरण पहने। उनके पूरे नाम भी कहना कठिन है । १०. मैं कह-कहकर कितनी बात कह सकता हूं। भरतजी ने कल्पवृक्ष की तरह श्रेष्ठ शृंगार से अपने आपको अलंकृत - विभूषित किया। ११. सकोरंट की फूलमाला सहित अपने मस्तक पर छत्र धारण किया। चार चमर डोलने लगे और जय-विजय के घोष गूंजने लगे । १२. दंडनायक, संधिपाल और दूतपाल द्वारा इस प्रकार के मांगलिक शब्दों की के उच्चारण के साथ अनेक राजा उसके साथ चलने लगे ।
SR No.032414
Book TitleAcharya Bhikshu Aakhyan Sahitya 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Ganadhipati, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Sukhlal Muni, Kirtikumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2011
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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