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________________ भरत चरित ४३१ १४. यह जीव अनादि काल से संसार में अठारह पापों का सेवन कर-कर सीधे नरक में गया है। १५. वहां परमाधार्मिक देवों के हाथों अनंत बार मार खाई है। परवश पड़े हुए छेदन-भेदन को प्राप्त हुआ है। १६. इस जीव ने अनंत क्षेत्रीय वेदना भी सहन की है। कहते-कहते उसका अंत नहीं आता। उसका कथन पूरा नहीं होता। १७. काम-भोग किंपाक फल के समान दुःखों की खान है। उनसे जीव बहुत हैरान हुआ। अब तक उनकी परख प्राप्त नहीं हुई है। १८. काम-भोग पराक्रमी योद्धा है। वे बहुत संहारक हैं। मूर्ख उनमें सुख मानता है, उनके पीछे-पीछे दौड़ता है। १९. जो काम-भोगों से प्रीति करता है वह कर्मों की राशि का बंधन करता है। मोहपाश में पड़ने से उनकी चार गतियों में दुर्दशा होती है। २०. राजाओ! आप राज्य, ऋद्धि-संपत्ति में अनुरक्त हैं। उससे आनंद मान रहे हैं। पर यह आपके साथ नहीं आएगी। २१. काम-भोग मोह कर्म के रोग हैं। फिर ये शाश्वत भी नहीं हैं। अतः कामभोगों को छोड़कर धर्म में आस्था रखो। २२. साधु और श्रावक के दो प्रकार के अलग-अलग धर्म कहे गए हैं। उनसे आठों ही कर्मों का नाश होता है और व्यक्ति अनंत सुख को प्राप्त होता है। २३. साधुपन पालन से जीव मोक्ष या देवलोक में जाता है। उसके आठों ही कर्मों का नाश हो जाता है। लोक में पूजनीय बन जाता है।
SR No.032414
Book TitleAcharya Bhikshu Aakhyan Sahitya 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Ganadhipati, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Sukhlal Muni, Kirtikumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2011
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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