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________________ दोहा १. तब डरते हुए उसने स्वीकार कर लिया। तेल भरा कटोरा उसके हाथ में दिया। चार पुरुषों को हाथ में खड्ग देकर उसके साथ भेजा। २. जब भी तेल की एक बूंद बाहर पड़ जाए तो वहीं इसकी हत्या कर देना। उसके सुनते हुए तो ऐसा कहा पर गुप्त रूप में नहीं मारने का कहा। ३. वह हाथ में कटोरा लेकर निकला। उसकी जो सीमा तय की गई थी उसमें स्थान-स्थान पर भांति-भांति के नाटक शुरू करवा दिए। ४. वह कटोरे पर ध्यान रखता हुआ धीमे-धीमे चलता हुआ जो सीमा निर्धारित की गई थी उसमें घूम आया। ५. हाथ जोड़कर ऐसे बोला- महाराज! मेरे मनवंछित कार्य सिद्ध हो गए। यह भरा हुआ तेल का कटोरा लें। मैं बच गया हूं। ६. भरतजी ने उससे कहा- तुम सारे स्थानों पर घूम आए। वहां तुमने क्या-क्या वृत्तांत देखे, यह मुझे बताओ। ७. उसने हाथ जोड़कर कहा- महाराज! मेरी दृष्टि तो कटोरे पर टिकी हुई थी। मैं और वस्तुओं को कैसे देख सकता था? आज मेरे गले में आफत पड़ी हुई थी। ८. भरतजी ने पलटकर ऐसा कहा- जैसे तुम्हारी दृष्टि कटोरे पर टिकी हुई थी उसी तरह मेरी दृष्टि मोक्ष पर टिकी हुई है। मैं कर्मों का नाश करूंगा। ९. मैं संयम लेकर कर्मों का नाश कर मुक्तिगढ़ में जाऊंगा। ऋषभदेवजी ने जो कहा वह सत्य है। जा, तुम फिर इस तरह की बात मत करना।
SR No.032414
Book TitleAcharya Bhikshu Aakhyan Sahitya 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Ganadhipati, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Sukhlal Muni, Kirtikumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2011
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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