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________________ भरत चरित ४०७ १०. वह हाथ जोड़कर बोला- मेरे में ज्ञान- अक्ल नहीं है। मैं बिना विचार किए बोल गया। होश - -हवाश के बिना यह बात निकल गई । ११. भरतजी ने इसे समझाने के लिए सेवक पुरुष को बुलाकर कहा- नगरी के बाहर ले जाकर इसकी हत्या कर दो। १२. यह सुनकर वह थर-थर कांपने लगा । मृत्यु से डर गया । कहने लगा- मेरा सारा धन ले लो, पर मुझे मारो मत। १३. भरतजी ने कहा- ऐसे तो नहीं छोडूंगा। हां, छोड़ने का एक ही उपाय है। तेल से डबाडब भरा कटोरा लेकर चारों दिशाओं में बाजार में घूमो । १४. तेल का एक टपका भी नहीं गिराए, कुशलतापूर्वक लौट आए तो तुम्हें जीवित छोड सकता हूं। और कोई उपाय नहीं है । १५. उसने कहा- चाहे जीवित रखो, चाहे मार डालो। यह तो मेरे से असंभव है । पर किसी ने सलाह दी कि तू मानले, भरतजी के वचन को स्वीकार करले ।
SR No.032414
Book TitleAcharya Bhikshu Aakhyan Sahitya 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Ganadhipati, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Sukhlal Muni, Kirtikumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2011
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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