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________________ भरत चरित ३८३ १३. उन महलों में चंद्रमा सरीखे उद्योत की जगमगाहट लग रही है। १४. रात्रि में जैसे विद्युत झलकती है उसी प्रकार भरतजी के महल झलक रहे हैं। चारों दिशाओं में उनकी चमक सूर्य की किरणों सरीखी है। १५. वे महल अत्यंत श्रीकार हैं। उनका रूपाकार भी सुंदर है। जिन महलों का निर्माण स्वयं देवताओं ने किया है उनका क्या कहना?। १६. उन महलों का बहुत बड़ा विस्तार है। इंद्र के महलों से इन्हें उपमित किया जा सकता है। उसके अनुसार ही सारी बात जाननी चाहिए। १७. मृदंग के मस्तक पर थाप पड़ रही है। उसके मनोज्ञ शब्द उठ रहे हैं। बत्तीस हजार नृत्यकार बत्तीस प्रकार के नाटक कर रहे हैं। १८. स्त्रीरत्न के साथ दिन-रात पांचों इंद्रियों के मनोज्ञ काम-भोग सुखपूर्वक भोग रहे हैं। १९. उनका चौसठ हजार अंत:पुर भी अप्सराओं की प्रतिकृति वाला है। उनसे भी वे रात-दिन मनोज्ञ सुखों का भोग कर रहे हैं। २०. इस प्रकार रसाल भोग भोगते हुए सुखपूर्वक काल व्यतीत हो रहा है। यों अभिषेक महोत्सव के बारह वर्ष निकल गए। २१,२२. मोहक महामहोत्सव के बारह वर्ष पूरे हो जाने पर भरतजी स्नानगृह में आकर स्नान कर उपस्थान शाखा में आते हैं। पूर्वाभिमुख होकर सिंहासन पर बैठते हैं। २३. सोलह हजार देवताओं को सत्कार-सम्मान देकर अपने ठिकानों की ओर विदा करते हैं।
SR No.032414
Book TitleAcharya Bhikshu Aakhyan Sahitya 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Ganadhipati, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Sukhlal Muni, Kirtikumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2011
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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