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________________ भरत चरित ३८१ २. फिर भोजन मंडप में प्रवेश कर सुखकारी आसन में बैठकर वहां तेरहवें तेले का पारणा करते हैं। ३. भोजन करके वहां से निकलकर महलों में सर्वोच्च मंजिल पर विराजमान हुए। ४. महलों के पांच प्रकारों का बहुत बड़ा विस्तार कहा गया है। देवताओं ने उनका निर्माण किया। उनमें अनेक अमूल्य रत्न भरे हैं। ५. आदर्श महल (काच महल) तो अत्यंत आश्चर्य कारक है। उसमें प्रतिबिंब दिखाई देता है। उसी महल में भरतजी केवलज्ञान प्राप्त करेंगे। ६. आकाश में शिखर के समान समुन्नत बयालीस भौमिक (मंजिल) महल अत्यंत मनोहर हैं। ७. उन रत्नजटित महलों को देख देखकर हर्षित होते हैं। वहां निरंतर रत्नों का उद्योत होता है। ८. वहां अनुपम स्वर्णवर्णी मनोरम पुतलियां ऐसी लगती हैं जैसे मुंह के सामने इंद्राणी नृत्य कर रही हो। ९. रंग-मंडप, तोरण तथा जालियों की कोरणियां अत्यंत मोहक हैं। उनकी खुदाई बहुत मनोरम है। १०. वहां अनेक रूपचित्र सुशोभित हो रहे हैं। उनका मनोज्ञ रूप आंखों को सुहामना लगता है। ११. किन्नर देवताओं के अनेक अनुपम रूप उसमें चित्रित हैं। विद्याधरों के युगलों के मोहक चित्र भी चित्रित हैं। १२. अनुपम लहरियों की खुदाई बड़ी चतुराई से की गई है। उनमें केशरक्यारी की पंचवर्णी फूलपत्तियां खिल रही हैं।
SR No.032414
Book TitleAcharya Bhikshu Aakhyan Sahitya 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Ganadhipati, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Sukhlal Muni, Kirtikumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2011
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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