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________________ भरत चरित ४. तीन सौ साठ रसोइयों और अठारह श्रेणि- प्रश्रेणि को भी बुलाया । ३५३ ५. तथा अन्य अनेक राजा, ईश्वर, तलवर, सार्थवाह, प्रधान अधिकारी आदि बहुत जनों को भी बुलाया । I ६. सभी ने आकर भरतजी की विनय भक्ति की । अंजलि को जोड़कर मस्तक झुकाया । ७,८. भरतजी ने उनसे कहा- मैंने अपने बल से भरतक्षेत्र में अपनी आज्ञा प्रवर्तायी, जीत - फतेह की । अतः तुम मेरा चक्रवर्ती के रूप में अभिषेक करो, जिससे मेरे मन चिंतित काम सिद्ध हों तथा सबको अच्छा लगे । ९. यों कहते ही आए हुए सारे राजा हर्षित और आनंदित हुए । १०. सारे हाथ जोड़कर बोले- आपने यह उपयुक्त कहा । आप छह खंड के स्वामी हैं। आपके लिए यही उपयुक्त है । ११. सब राजा भरतजी के वचन एवं कथन को स्वीकार कर अपने- अपने स्थान को लौट गए। १२. भरतजी अब राज्याभिषेक के लिए बड़ा आडंबर रचते हैं। पर वे राज्यलोलुप नहीं हैं। इसे भी छोड़ देंगे । १३. संयम ग्रहण कर शूरवीरता से कर्मों को काटेंगे, उनसे निजात पाएंगे, सुखपूर्वक सिद्धि को प्राप्त करेंगे।
SR No.032414
Book TitleAcharya Bhikshu Aakhyan Sahitya 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Ganadhipati, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Sukhlal Muni, Kirtikumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2011
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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