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________________ भरत चरित २३ २७. ऊगते हुए सूर्य की किरण एवं कमलगर्भ के समान उनका शरीर सभी प्रकार से निर्लेप है । वह सार पुद्गलों से निर्मित है । 1 २८-२९. उनके शरीर में पद्म - कमल, कुंदग, जाही, जूही, चंपक, नागकेसर के फूलों तथा कपूर एवं कस्तूरी जैसी उत्कृष्ट सुगंध फूट रही है । ३०. वे छत्तीस प्रशस्त गुणों से युक्त हैं । वे वंश परंपरा से अविच्छिन्न- अखंड राज्य का उपभोग कर रहे हैं। उनके माता-पिता भी भूमंडल में प्रसिद्ध हैं । ३१. उनका कुल पूनम के चांद की तरह निर्दोष एवं लोकप्रिय है। चंद्रमा की तरह सौम्य है। उनका दर्शन ही मन और आंखों के लिए हितकारी है ।। ३२. भरतजी समुद्र की तरह अक्षुब्ध एवं सब प्रकार के भय से निर्भय हैं । कुबेर की तरह भोग उनके उदय में आए हैं। सभी संयोग अपने आप जुड़ गए हैं। ३३. युद्ध में वे अपराजेय हैं। किसी के सामने वे पग पीछे नहीं देते। उनका पराक्रम अनुपम है तथा रूप इंद्र के समान है । ३४. वे इसी भव में दीक्षा ग्रहणकर शिवगामी होने वाले हैं। वे चारित्र ग्रहणकर कर्मों को क्षीण कर मुक्तिगढ़ में पहुंचने वाले हैं। ३५. ऐसे भरत राजा सब कार्यों में सावधान हैं । वे छह खंडों का अखंड राज्य करते हैं। पूरे ब्रह्मांड में प्रिय हैं । ३६. उनके सारे दुश्मन लज्जा और शर्म को छोड़कर भाग गए। पुण्योदय से उन्होंने ऋद्धि-संपदा प्राप्त की। उनकी कहानी दत्तचित्त होकर सुनें ।
SR No.032414
Book TitleAcharya Bhikshu Aakhyan Sahitya 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Ganadhipati, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Sukhlal Muni, Kirtikumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2011
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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