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________________ ३२४ भिक्षु वाङ्मय-खण्ड-१० द्रव्यकारी कतूलकारी घणा, कंदरप री कथा कहता अनेको जी। कुंकुई कुचेष्टा करें घणा, मुखअरी वाचाल विशेखो जी।। ६. गीत गावता मुख आगल घणा, घणा वजावंता तामो जी। नाचता हसता रमता थका, केइ कीला करंता ठाम ठांमो जी। ७. केइ गीत माहोमा सीखावता, केई संभलावे माहोमा गीतो जी। केइ सुभ वचन मुख बोलता, केइ सुभ बोलावता रूडी रीतो जी।। केइ सोभा सिणगार करता थका, केइ करता अनेक विध फॅनों जी। केई ओरां तणों रूप देखता, यां सगलां रा जूआ जूआ चेंहनों जी। केइ जय जय सब्द प्रजूंजता, केइ जय जय बोलतां तांमो जी। केइ मुख मंगलीक बोलता थका, मुख आगल बोले छे ठाम ठांमों जी। १०. अनुक्रमें सगलाइ चालता, उवाइ सुतर रे अनुसारो जी। जाव आश्व ने आश्वधरा, त्यांरो विविध प्रकारे विस्तारो जी। ११. नाग हस्ती बेहूं पासें चालता, वळे त्यांरा झालणहारो जी। वळे बेहूं पासें रथ में पालख्यां, चालता सो) छे श्रीकारो जी। भरत वनीता नें चालीयो। १२. हस्ती रत्न बेठों सोंभें नरपती, जांणक पुनम चंदो जी। रिध करने परवस्यों थकों, जांणें सांप्रत दीसें देविंदो जी।। १३. चक्ररत्न देखाले मारगें, चालें , भरत नरिंदो जी। त्यारें पूठे पूठे आवें चालीया, अनेक राजां रा वृंदो जी। १४. मोटें आडंबर सूं आवता, समुद्र नी परें करता किलोलो जी। सर्व रिध जोत करनें परवरया, सीहनाद ज्यूं करता हिलोलो जी।
SR No.032414
Book TitleAcharya Bhikshu Aakhyan Sahitya 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Ganadhipati, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Sukhlal Muni, Kirtikumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2011
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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