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________________ भरत चरित २८३ ६. उसके एक हजार देवता अधिष्ठायक हैं। वे सेवक की तरह उसकी आज्ञा का पालन करते हैं। ७. वे किंकर की तरह उसके चिंतित कार्यों का संपादन करते हैं। ८. वह अमूल्य नारीरत्न है। इसी से उसको यह सुयोग मिला है। ९,१०. वह काम-भोगों में आनंद प्राप्त कर रही है। उसने भरत नरेंद्र को अपने वश में कर लिया। श्रीदेवी के संयोग से भरतजी मनुष्य के उत्कृष्ट काम सुखों का उपभोग कर रहे हैं। ११. जिस काल में चक्रवर्ती पैदा होता है उसी काल में श्रीदेवी जैसा स्त्रीरत्न पैदा होता है। १२. यह नि:शंक बात है- चक्रवर्ती के बिना स्त्रीरत्न पैदा नहीं होता। १३. भरत नरेंद्र पूनम के चंद्रमा के समान हैं पर वे भी उसे देखकर आनंदित होते हैं। १४. भरत चक्रवर्ती के स्त्रीरत्न की देवता सुरक्षा करते हैं। १५. इनको मनोगत संयोग प्राप्त हुए हैं यह इनकी तपस्या का फल है। १६. इनके आश्चर्यकारी भोग-संयोग वियोग रहित हैं। १७. इसका रूप अप्सरा जैसा है। इसकी यशकीर्ति अपार है। १८. जैसे को तैसा यह योग समकाल में ही प्राप्त होता है। १९,२०. इनके आपस में अंतरंग प्रेम हैं। राजा-राणी दोनों ही बड़भागी हैं। भरतजी श्रीरानी से अनुरक्त हैं। उसने क्रीड़ाओं से उनका मन मोह लिया।
SR No.032414
Book TitleAcharya Bhikshu Aakhyan Sahitya 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Ganadhipati, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Sukhlal Muni, Kirtikumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2011
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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