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________________ भरत चरित २७९ १२. उसका हंसना गंभीर और आश्चर्यकारक है। उसकी विशाल नैत्र चेष्टा ही विकार उत्पन्न कर देने वाली है। परस्पर बातचीत में भी वह अत्यंत चतुर और समझदार है। १३. इंद्र की अप्सरा के समान उसका रूप अत्यंत अनुपम है। देवांगना भी इसके रूप से अतुलनीय है। १४. ऐसा भद्र और कल्याणकारी सुभद्रा नाम का वह नारीरत्न है। यौवन में प्रकट होने वाले युवती के सभी श्रीकार गुण उसमें विद्यमान हैं। १५. विनमी राजा ऐसे नारीरत्न को लेकर तथा नमी राजा रत्न, कड़े, भुजबंध आदि लेकर आता है। १६. विद्याधर की सर्वोत्कृष्ट गति से चलकर वे भरतजी के पास आए। नन्हीनन्ही घुघरियों सहित उपयुक्त रूप से आकाश में खड़े हुए। १७. उनके पहने हुए कपड़े प्रशस्त और पचरंगे हैं। वे सविनय हाथ जोड़कर बार-बार नमन कर रहे हैं। १८. जय-विजय शब्द से राजा को वर्धापित कर प्रशस्तियां बोल रहे हैं। आपने सारे भरतक्षेत्र को जीत लिया। एक भी शत्रु शेष नहीं रखा। १९. हम आपके आज्ञाकारी सेवक किंकर चाकर हैं। आपके देश के नागरिक हैं। हमें आपकी आज्ञा शिरोधार्य है। २०,२१. अतः आप कृपा कर हमारा उपहार स्वीकार करें। यों कहकर गुणगान कर विनमी ने स्त्रीरत्न तथा नमी ने रत्न, आभूषण अर्पित किए। भरतजी ने सादर उनको विदा कर दिया। २२. नमी विनमी विद्याधरों को विनत कर भरतजी ने अपनी आज्ञा मनाई। पर इसे नि:सार माया जानकर संयम ग्रहण कर अविचल मोक्ष धाम में जाएंगे।
SR No.032414
Book TitleAcharya Bhikshu Aakhyan Sahitya 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Ganadhipati, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Sukhlal Muni, Kirtikumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2011
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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