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________________ २७१ २,३. . तीन दिन पूर्ण होने पर भरतजी अश्व रथ पर सवार हुए। अनेक वाद्यंत्र बजते हुए सिंहनाद ज्यों गर्जना करते हुए चूल हेमवंत पर्वत के निकट आकर रथ के सिर से तीन बार पर्वत का स्पर्श किया। भरत चरित ४. मागध तीर्थ के वर्णन की ही तरह वहां रथ को खड़ा कर बाण फेंका, जो बहत्तर योजन दूर तक गया । ५-९. अपनी सीमा में बाण को पड़ा देखकर देव के मन में विशेष द्वेष जागा । बाण को हाथ में लेकर नाम पढ़कर निर्णय किया । भरतक्षेत्र में भरत नरेंद्र पैदा हुए हैं। वह मन में अत्यंत आनंदित हुआ। मागध तीर्थ के वर्णन की तरह ही चिंतन किया- मैं उपहार लेकर भरत नरेंद्र के पास जाऊं । तदनुसार सर्व प्रकार की औषधि, चंदन, गशीर्ष, विभिन्न वनस्पति, फूल और सुंदर फूलमालाएं, राज्याभिषेक के लिए पद्म द्रह का ताजा पानी और पूर्वोक्त अनुसार आभूषण लेकर आया । उन्हें भरत नरेंद्र के सामने प्रस्तुत किया । १०. . दोनों हाथ जोड़कर नतमस्तक होकर गुणगान करने लगा - भरत नरेंद्र, मैं आपका वशवर्ती हूं। उत्तर दिशा का रखवाला - कोटपाल हूं । ११. आप मेरे स्वामी हैं मैं आपका सेवक हूं। मैं आपका उत्तर दिशा का रखवाला-कोटपाल हूं। १२. मैं आपका किंकर हूं, चाकर हूं। आपके देश का नागरिक हूं । पूर्वोक्त मामध तीर्थ की तरह यहां भी उसने धूमधाम से विनय किया।
SR No.032414
Book TitleAcharya Bhikshu Aakhyan Sahitya 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Ganadhipati, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Sukhlal Muni, Kirtikumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2011
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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