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________________ २५८ २. भिक्षु वाङ्मय-खण्ड-१० पागडा सोवन में सोभ रह्या छे, ते कचन मणी रत्न में जडंत। नाणा प्रकार नी जालीयां छे घंटारी,लघू गुघरीयांनी जाली अनेक लहकंत।। ३. वळे मोत्यां री जाल्यां करे पडिमंत छे, वळे मोत्यां री झूबका लटकें अनेक। ते सोभायमांन त्यांसूं सोभ रह्या छे, इण सरिखों अश्व वळे नही कोइ एक।। ४. करकेतन रत्न इंद्रनील रत्न, वळे मरकेतन मसारगल जांण। च्यारू जातरा रत्न करे मुख तिणरों, रूडी रीत रचे कीयों सोभायमांन।। ५. वळे माणक अनेक सूत सूं पोया, त्यांसू पिण मुख सिणगारयों ताहि। वळे कनक रत्न पदम वर्ण शरीखों, तिणरो तिलक कीयों देवां करे चुतराय।। ६. ते वाहण सुरिंद्र जोग अनोपम, सिणगास्यों थकों सोभे अत ही सरूप। उरहा परहा आभूषण चालें, जब देखणहार ने इधिकी चूंप।। ७. तिणरा नयण मिलें नही निद्रा करनें, कमल पत्र तणी परें सोभायमांन। धणीनो कार्य करवा समर्थ पूरों, चंचल सरीर तिणरो परधांन। ८. सदा सरीर ढाक्यों कंचण जडत वसत्र सूं, डंस मंस निमतें वळे सोभाने काजें। तालवो जीभ तपाया सोना वर्णा छे, श्रीलिखमी रा अभिषेक मुखरे विराजे।। ९. खुरे धुरी रूडा चरण चचर पुटा छे, धरणी तलाने घणु हणतों २ चालें। दोनूं चरण समकालें ऊपाडे, पगां सूं धरती खणनें खाडों नही घालें। १०. सिघ्र पणे चालें कमल नालिका ऊपर, पाणी उपर पिण सिघ्र चालें। कमल पांणी नेश्रा विना प्राकम छे तिणरों, निज पोतारा बल प्राकम सूंहालें। ११. जात माता री में कुल पिता रों, ते दोनूं पक्षां करे निरमल पूरो। रूप आकार में सुंदर तिणरों, पसथ विसुध लखांणां करें रूडो।।
SR No.032414
Book TitleAcharya Bhikshu Aakhyan Sahitya 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Ganadhipati, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Sukhlal Muni, Kirtikumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2011
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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