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________________ २४६ भिक्षु वाङ्मय-खण्ड-१० ४. त्यांने देव दाणव वंतर नी जात, च्यारूइ जात रा देव विख्यात। ते भरत नरिंद राजंद में सोय, उपद्रव्य करे न सकें कोय।। ५. तो पिण तुम्हे इण ठांमें आय, जिहां सेन्या सहीत भरतेसर राय। त्यांरा कटक उपर थें मूसलधार, विरखा आंण कीधी इणवार।। ६. पाणी वरसायो थे मूसलधार, सात दिवस लगतों इणवार। अजेस थारों ओहीज ध्यान, थांरी भिष्ट हुइ छे अकल गिनांन।। ७. थे कीधों घणों छे दुष्ट अकाज, तिणसूं लाज सर्म थारी जासी आज। केंतों अजे सांवटलों मेह, नही तर किया पावोला एह। ८. केंतों सावटलों तुरत सताब, राखी चावो जो इजत आब। जेझ करोला सेंहल गिणंत, तो जीतव्य नो आयो दीसें अंत।। ९. इम सुणने मेघमुख नागकुमार, अतंत भय पांम्यों तिणवार। त्रास घणी पांमी तिण ठाम, जांण्यों इसडों कदेय करां नही काम।। १०. भय भ्रांत हुआ त्यां साहमों न्हाल, वर्षा संवट लीधी ततकाल। . डरता न्हास गया छे तास, आपात चिलात रे आया पास।। ११. आपात चिलात नें कहें , आम, ओ भरत नरिंद छ खंड रो सांम। ओ चक्रवत छे मोटों राजंद, जाणे पुनम केरो चंद।। १२. च्यारूड़ जातरा देवतां माहि, इणनें भगावण समर्थ नाहि। वळे भरत नरिंद राजंद में सोय, उपद्रव्य करे न सकें कोय।। १३. म्हें पिण तुमाहरी पीत में काज़, उपसर्ग करे गमाइ लाज। तिणनें उपशर्ग दुख न हूवों लिगार, म्हें पिण न्हास आया इण वार।।
SR No.032414
Book TitleAcharya Bhikshu Aakhyan Sahitya 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Ganadhipati, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Sukhlal Muni, Kirtikumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2011
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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