SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 248
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २३६ भिक्षु वाङ्मय-खण्ड-१० २. राज ने लिखमीरा चेंहन तिण माहिए, उरजन सोवन करे ढांक्यों छे ताहिए। ते पूठलों भाग छत्र तणों जांण ए, उजलों पडूर स्वेत वखांण ए।। ३. तवणीज्ज रक्त सोवन माहे तास ए, पाटीया छे तिणरें चिहूं पास ए। ते अधिक सश्रीक ते अतही सोभंत ए, देखणहार नों मन हरखंत ए।। ४. रूप पुनम चंद मंडला समांण ए, लांबों पेंहलों नरिंद री भूजा परमाण ए। सहिज सभाव निरंतर जाण ए, विसतरें जब अनेक जोजन परमांण ए।। ५. चंद्रविकासी कमल वन खंड ए, तेह समांण धवलों प्रमंड ए। भरत राजा नों चलितों विमांण ए, एहवों छत्र रत्न वखांण ए।। ६. सूर्य आताप वायरों वरसात ए, यां तीनोइ दोष ने करदें निपात ए। एहवों सुखकारी छे छत्र रत्न ए, सर्व सेन्या तणों करदे जतन ए।। ७. पूर्व तप गुण कीया प्रधान ए, तिण करे पामीयो छे एह निधान ए। घणा गुण अखंडत तेहनों दातार ए, इण सूंवड वडा गुण पांमें श्रीकार ए।। ८. छहूं रित तणा सुखनों , दातार ए, वळे दुखां रो दूर निवारण हार ए। तिण छतर री छाया घणी सुखदाय ए, सर्व रोग ने सोग वेळे होय जाय ए।। ९. उतकष्टो छतर रत्न परधान ए, गुणोपेत सोभ रह्यों उनमांन ए। अलप पुनीयां जीवनें पांमणों दोहिलों ए, जिण तिण नें नहि पांमणो सोहिलों ए।। १०. तिणरों अधिपती हुवें , घणों गुणवंत ए, ते छ खंड रों राज निश्चें करंत ए। एक सहंस आठ लखण हुवें ताहिए, इणां गुणां विना अधिपती इणरो न थाय ए।।
SR No.032414
Book TitleAcharya Bhikshu Aakhyan Sahitya 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Ganadhipati, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Sukhlal Muni, Kirtikumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2011
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy