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________________ २२४ ११. आपाचिलातो रे, हत पर हथ १२. वर प्रधांन जोरावर जोधा १४. घणा सुभ हूआ घणा त्यांरी हथीया रे, १५. भय वीरा रे, रे, ते १३. जोर कोइ न लागो रे, दिसों दिस गया हणणारे, हार परगया अथागो पांम्या जुझ करवासूं धाया रे, १७. एहवों भिक्षु वाङ्मय - खण्ड- १० छें घातो रे। दहीनी परें मथीया रे। धजा नें पताका त्यारा लूटे लीया रे ।। मरांणा रे, भय भ्रांतो रे, प्रतापो तेज त्यांनें भरत राजांनों कीधी सधीरा रे । हुंता सुभट पिण पड गया बोदा रे। ते पिण सेनापतीरत्न देखेनें धूजीया रे ।। भागो रे । रे। घणा सुभट मरांणा नास गया सर्व डेरा छोडनें रे ।। जब घणा सीदाणा रे । त्रास पांमी अतंतो रे । प्रहारां पीरया उदेग पांम्या घणा रे ।। १६. शक्त शरीर री न कायो रे, पाछों मंडीयों न जायो रे । रे, सेनापती रा तापों निजरां दीठां आपो रे । समर्थ नही आपे इणनें जीपवा रे ।। रे, मननों बल भागो रे । जाबक होय गया काया रे । पुरषाकार प्रकम त्यांरो छिप गयो रे ।। रे, सेनापती रो रे, जांणें सर्व धूर आतापो रे । समानों रे । यांनें छोड संजम ले जासी मुगत में रे ।।
SR No.032414
Book TitleAcharya Bhikshu Aakhyan Sahitya 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Ganadhipati, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Sukhlal Muni, Kirtikumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2011
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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