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________________ भरत चरित ११ I ९. विनीता नगरी को देखकर लोग प्रमुदित एवं हर्षित हो जाते हैं । उसे देखकर चित्त प्रसन्न हो जाता है तथा बार-बार देखने की इच्छा होती है । १०. दर्शक को वहां अपने भांति-भांति के प्रतिबिंब दिखाई देते हैं । उसका विस्तार बहुत अधिक है। उसे पूरा कैसे कहा जा सकता है ? । 1 ११. जिनेश्वर ऋषभ उस नगरी के अधिपति हैं । मैं उनका थोड़ा-सा वर्णन कर रहा हूं । चतुर लोग उसे ध्यानपूर्वक सुनें । ढाळ : १ ऐसे होते हैं पुण्य के फल । १. जिनेश्वर ऋषभ बड़े राजा हैं । हेमवंत पर्वत की तरह विख्यात हैं । नाभि राजा एवं मोरा देवी रानी के अंगजात पुत्र हैं 1 २. इस अवसर्पिणी काल में वे पहले राजा तथा पहले तीर्थंकर हुए हैं । वे दीप्त गुण रूपी रत्नों की खान हैं । ३. उनके माता-पिता का कुल निर्मल है । वे यौगलिकों की संतान हैं। वे सर्वार्थ सिद्ध देवलोक से च्युत होकर आए हैं । उनके शरीर में परम समाधि है । ४. उनकी अनुपम कंचनवर्णी काया एक हजार आठ शुभ लक्षणों से सुशोभित है । उनका रूप आश्चर्यकारक है । ५. ऋषभ सम्राट् बीस लाख पूर्व वर्ष तक युवराज रहे। फिर यौगलिक परंपरा से हटकर ठाठ-बाट से राज्यासीन हुए । ६. कुशलता से राज्य करते हैं। उनकी नीति में कोई खामी नहीं है । वे अपनी प्रजा की सुरक्षा के प्रति सावधान हैं । वे राजधर्म का सम्यग् अनुपालन करते हैं । ७. उन्होंने पुरुषों की बहोत्तर कलाओं, महिलाओं की चौसठ कलाओं तथा कथनी-करणी की समानता का सभी लोगों को प्रशिक्षण दिया ।
SR No.032414
Book TitleAcharya Bhikshu Aakhyan Sahitya 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Ganadhipati, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Sukhlal Muni, Kirtikumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2011
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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