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________________ २०६ भिक्षु वाङ्मय-खण्ड-१० ८. इत्यादिक मणीरत्न में जी, गुण अनेक पिछांण। ते मिलीयों , भरत नरिंद ने जी, पुन परमाणे आंण।। ९. तिण मणीरत्न ने भरत जी, त्यां लीधों हाथ मझार। हस्ती कुंभाथल पासें जीमणे, मणीरत्न मूंक्यों तिणवार।। १०. हस्ती उपर बेंठा सोभे भरतजी, जाणे पूरों पूनिम रों चंद। रिध करने परवस्यों थकों, जांणे अमरपती सक्रइंद।। ११. चक्ररत्न रें पूठे चालता, लारें सीहनाद करता थका, समुद्र नी राजा परें अनेक करता हजार। गुंजार।। १२. आया तमस गुफा रे बारणे, तिण गुफा में घोर अंधार। जब भरतजी कागणी रत्न में जी, लीधों हाथ मझार।। १३. तिण कागणी नामें रत्न रें जी, छ तला कह्या छे तांम। च्यारू दिसिना च्यारू तला, ऊंचों ने नीचों दोनूं आंम।। १४. आठ खूणा छे तेहनें जी, अहरण रें संठाण। आठ सोनइयां भार मांन ,, एहवों कागणी रत्न वखांण।। १५. एक एक हांसि छे एतली जी, च्यार च्यार आंगुल परमाण। छहूं हांसि बरोबर सारिखी, समचउरस तिणरों संठांण।। १६. विष , थावर जंगम तणों, तिण विष रो निवारणहार। अतुल्य तुल्य रहीत छ, अनोपम रत्न , श्रीकार।। १७. मांन उन्मांन प्रमाण जोग छे, एतला मांन वशेष ववहार। ते सगला कागणी रन थी, प्रवर्ते छे लोक मझार।। १८. कागणी जेहवों नामा रत्न थी, विणसजाों चंद सूर्य अगन थी, मिटें नही अंधकार। अंधार।।
SR No.032414
Book TitleAcharya Bhikshu Aakhyan Sahitya 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Ganadhipati, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Sukhlal Muni, Kirtikumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2011
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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