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________________ भरत चरित १९५ ५. उन्होंने देवी-देवताओं को भी अपने वश में कर लिया। उनका उपहार ग्रहण कर अपना सेवक बना लिया। उन पर अनुशासन कर आनंदित हैं । ६. देवी-देवता उपहार ले-लेकर आते हैं। जय-विजय शब्दों से उन्हें वर्धापित करते हैं । मुख से प्रशस्तियां बोलते हैं । ७. सूर्य ऊगने से अंधकार दूर भाग जाता है, सोया कमल-वन जाग जाता है वह दिनकर है, इंद्र है। ८. भरतजी से भी शत्रु - वैरी दूर भाग जाते हैं, वे प्रजा को प्रिय लगते हैं इस न्याय से वे सूर्य के समान हैं । ९. द्वितीया में चंद्रमा की थोड़ी कलाएं नजर आती हैं। फिर प्रतिदिन वे बढ़ती जाती हैं। पूर्णिमा का चंद्रमा सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता है । १०. भरतजी के भी प्रतिदिन संपदा का विस्तार हो रहा है, प्रतिदिन पृथ्वी पर सत्ता का विस्तार हो रहा है । ये छह खंड के अधिपति होंगे। 1 ११. ये चौदह रत्नों, नौ निधान, चौसठ हजार प्रमुख राजाओं की ऋद्धि से परिवृत्त होने से शक्रेंद्र जैसे लगते हैं । १२. इन्होंने कभी पीछे मुड़ना नहीं सीखा। छह खंड में कुशलक्षेम का प्रवर्तन किया है। नगेंद्र मेरु के समान अडिग हैं । १३. देव-देवियों को इन्होंने नत मस्तक किया, सब राजाओं को वश में किया, इसलिए ये राजेंद्र कहलाए । १४. ये नाग कुमार में धरणेंद्र के समान, सुवर्ण कुमार में वेणु देवेंद्र के समान, ग्रह-नक्षत्र गण में चंद्र के समान सुशोभित हैं । १५. देवता भी दिन रात इनकी सेवा करते हैं, हाथ जोड़कर नमस्कार करते हैं । भरतक्षेत्र में दिनकर की तरह इंद्र के रूप में उदित हुए हैं I
SR No.032414
Book TitleAcharya Bhikshu Aakhyan Sahitya 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Ganadhipati, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Sukhlal Muni, Kirtikumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2011
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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