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________________ भरत चरित १८३ ७. सूर्योदय के समय पर बोने पर अस्त होने के पहले-पहले वे पक जाते हैं। उसी दिन उन्हें काटा जा सकता है। ऐसे-ऐसे गुण इस चर्मरत्न में हैं। यह पुण्य के प्रसाद रूप में प्राप्त होता है। ८. वर्षा बरसने पर चक्रवर्ती हाथ से इसका स्पर्श करता है तो यह तिरछा फैल जाता है। साधिक बारह योजन से लंबे इसके विस्तार के नीचे सारी सेना समा जाती है। ___९. जब सेनापति ने चर्मरत्न का हाथ से स्पर्श किया तो वह तत्काल नौका के रूप में परिणत होकर नौका की तरह ही सिंधु नदी में तैरने लगा। १०. एक हजार अधिष्ठायक देवता चर्मरत्न के पास रहते हैं। इसके गुण के अनुसार ही देवता इसकी महिमा बढ़ाते हैं। ११. चर्मरत्न अमूल्य है। भरतक्षेत्र में ऐसा दूसरा नहीं है। भरत चक्रवर्ती के पुण्य के योग से ही यह आयुधशाला में आकर उत्पन्न हुआ। १२. सारी सेना हाथी-घोड़ा आदि सहित सुषेण सेनापति उस नावाभूत चर्मरत्न पर सवार हो गया। १३. चर्मरत्न से सारे सिंधु नदी के पार उतर गए। सिंधु नदी का पानी अति गहरा और निर्मल था। वह हिलोरे मार रहा था तथा उसमें ऊंची-ऊंची लहरें कल्लोल कर रही थीं। १४. पूर्व तप के फल के रूप में ऐसा अमोलक रत्न भरतजी को प्राप्त हुआ। पर वे इसे भी छोड़कर संयम ग्रहणकर इसी भव में निर्वाण को प्राप्त होंगे।
SR No.032414
Book TitleAcharya Bhikshu Aakhyan Sahitya 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Ganadhipati, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Sukhlal Muni, Kirtikumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2011
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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