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________________ भरत चरित १७३ ४. वह पारसी, अरबी आदि म्लेछों की भाषा का ज्ञाता-प्रवीण, दक्ष, चतुरसुजान है। __५. वह विविध प्रकार की भाषाओं का मधुर और मनोहर रूप से उच्चारण करता है। उसका वचन प्रिय लगता है। वह नपे-तुले शब्दों में बोलता है। ६. वह अर्थशास्त्र, नीतिशास्त्र आदि अनेक शास्त्रों का ज्ञाता है। उसमें विविध प्रकार की कला-चतुराई तथा उसकी पहचान है। ७. वह भरतक्षेत्र की खाइयों, गुफाओं तथा दुर्गम स्थानों का भी जानकार है। वहां कष्ट से जाने तथा कष्ट से प्रवेश करने की कला भी उसमें है। ८. ऐसे पर्वत, जंगल तथा ऊबड़-खाबड़ स्थान जहां कायर आदमी प्रवेश नहीं कर सकता, वहां भी वह शंकित या भयभीत नहीं होता। ९. वह सेनापतिरत्न अत्यंत सूरवीर, धीर, साहसी है। उसके प्रबल पुण्यों का संचय है। वे ही आज उदय में आए हैं। १०. वह हजार देवताओं का अधिष्ठायक है। सब देवता उसकी सेवा में तत्पर रहते हैं। सेनापतिरत्न यदि उन पर कुपित हो जाए तो उनको मारपीट कर चकचूर कर देता है। ११. एक हजार देवता रात-दिन सेनापतिरत्न के पास रहते हैं। वे अत्यंत उल्लासपूर्वक उसका मनचिंतित कार्य करते हैं। १२. सेनापतिरत्न इतना पुण्यवान् है। भरतजी उसके भी अधिपति हैं, उनके पुण्य का तो कहना ही क्या? क्योंकि उनके ऐसा सेनापति रत्न है। १३. वह भरतजी का अत्यंत विनीत है। आज्ञाकारी सेवक की तरह उसे जो भी काम दिया जाता है वह उसे सहर्ष पूरा करता है।
SR No.032414
Book TitleAcharya Bhikshu Aakhyan Sahitya 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Ganadhipati, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Sukhlal Muni, Kirtikumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2011
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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