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________________ भरत चरित अनेकानेक वस्तुओं का यथा प्रसंग इतना हूबहू विवरण प्रस्तुत किया है कि वह दृश्य सामने खड़ा होता हुआ सा प्रतीत होता है। ___ इसी प्रकार जहां भरत के राज्याभिषेक का वर्णन आता है उसे इतना विस्तार से बताया गया है कि पाठक चकित रह जाता है। मंच की संरचना एवं साज-सज्जा के साथ-साथ इस नयाचार (प्रोटोकोल) का भी बड़ी शालीनता से वर्णन किया गया है कि मंच पर कौन व्यक्ति किस दिशा की सीढ़ियों से आकर कहां आसन ग्रहण करता है तथा वह किस प्रकार चक्रवर्ती भरत का वर्धापन करता है। बतीश सहंस राजा तिण अवसरे, आया अभिषेक मंडप मांहि। अभिषेक पीढ रे प्रदक्षिणा करे, चढिया उत्तर पावडिया ताहि ।। (ढाल ५९ दोहे) उस अवसर पर बत्तीस हजार राजे अभिषेक मंडप में आये और अभिषेक पीढ की प्रदक्षिणा कर उत्तर दिशा की सीढ़ियों से ऊपर चढ़े। सेनापति, गाथापति, बढ़ई तथा पुरोहित ये चारों रत्न तथा शेष राजा आदि दक्षिण दिशा की सीढ़ियों से अभिषेक पीढ पर चढ़ते हैं। अन्य सब लोगों का भी अपनाअपना नयाचार नियत है। इस प्रकार भरत चरित्र में तात्कालिक राज्य व्यवस्था एवं नयाचार पर भी बहुत ही सुन्दर एवं सविस्तार वर्णन किया गया है। सामान्यतया कवि और संत दो भिन्न दिशाएं मानी जाती हैं। कवि रसराज शृंगार का वाहक माना गया है। संत अध्यात्म वादी होते हैं। पर आचार्य भिक्षु सभी रसों के उद्गाता हैं। यद्यपि उनका मुख्य प्रतिपाद्य शांत रस ही रहा है। पर यथास्थान उन्होंने शृंगार रस पर भी चर्चा की है। उन्होंने स्वयं कहा है बिन कारण कहणो नहीं नारी रूप श्रृंगार । यथातथ्य कहतां थकां, दोष नहीं छे लिगार ।। अर्थात् संत को बिना प्रयोजन नारी-रूप श्रृंगार की बात नहीं करना चाहिए। पर प्रसंगोपात्त यथार्थ वर्णन करने में कोई दोष नहीं है। भरत चरित्र में स्त्रीरत्न श्रीदेवी आदि नारी पात्रों के शरीर, रूप, लावण्य, वस्त्राभूषणों की भरपूर चर्चा की गई है। पर उसमें कहीं भी शृंगार की मादकता नहीं है अपितु यथार्थ का चित्रण है। भरत चरित्र में भरत का पूरा चरित्र तो चित्रित है ही उनके पिता ऋषभदेव, माता
SR No.032414
Book TitleAcharya Bhikshu Aakhyan Sahitya 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Ganadhipati, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Sukhlal Muni, Kirtikumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2011
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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