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________________ भरत चरित १२३ उन्हें जीते और जिनको जीत लिया है उनकी प्रतिपालना करें। आपकी जय-विजय हो, आपका राज्य विशाल हो। ३. आप छह खंड के स्वामी हैं। शत्रुओं का मर्दन करने वाले हैं। इस प्रकार प्रशंसा की। ४. मैं पूर्वदिशि में मागध तीर्थ में रहने वाला मागध कुमार देवता हूं। मैं अपना अभिमान छोड़कर आपके पास आया हूं। आपके देश का नागरिक हूं। ___५. मैं आपका दास हूं, आज्ञाकारी सेवक हूं। संपूर्ण पूर्व दिशा का रखवाला तथा विघ्नों का निवारण करने वाला हूं। ६. यदि कोई दुष्ट देवी-देवता आकर लोगों को कष्ट देगा, मिरगी आदि रोग या महामारी फैलाएगा तो मैं उसे ऐसा अन्याय नहीं करने दूंगा। ७. किसी देवता ने कोई उपसर्ग किया तो मैं उसे मिटा दूंगा। मैं आपके पूर्वदिशि का कोटपाल हूं। ८. आप जैसे उत्तम पुरुष के आगमन की बात जानकर मैं उपहार लेकर आपके पास आया हूं। उसे मैं आपके चरणों में समर्पित करता हूं। ९,१०. हार, मुकुट, कानों के कुंडल, बाजुबंध, बाहों में पहनने के लिए बहरखा, देवदुष्य आदि वस्त्र-आभरण तथा अपना नामांकित बाण समर्पित किया। यह मागध तीर्थ का जल आपके राज्याभिषेक का परिचायक है। ११. इतनी प्रकार की वस्तुएं सामने रखकर हाथ जोड़कर बोला- आप इन्हें स्वीकार कर मुझे सनाथ करें।
SR No.032414
Book TitleAcharya Bhikshu Aakhyan Sahitya 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Ganadhipati, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Sukhlal Muni, Kirtikumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2011
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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