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भिक्षु वाङ्मय-खण्ड-१० १३. वढइरतन सुणे हरष्यों घणो रे, वचन कर लीधो तिण प्रमाण रे।
भरतजी कह्यों तिम सगलो करी रे, आगन पाछी सूपी आंण रे।।
१४. जब भरतजी हस्तीरत्न थी उतरी रे, आया , पोषधसाला माहि रे।
मागध तीर्थ कुमार ने कारणे रे, तेलो कीयों तिण ठांमें आय रे।।
१५. तीन दिन पूरा हूआं थकां रे, नीकल्या , पोषधसाला बार रे।
उवठाण साला आयनें भरतजी रे, सेवक ने बोलाय कहें तिणवार रे।।
१६. चउरंगणी सेन्या में तूं सझकरी रे, चउघंट रथ में सिणगारे जाय रे।
तिण रथ रे घोडा जोतरनें सजकरी रे, म्हारी आगन पाछी सूपे आय रे।।
१७. जे जे हुकम करे सेवग भणी रे, ते सेवग करें हर्षसूं काम रे।
ते पूर्व तप तणा फल जांणजो रे, वळे तप कर जासी अविचल ठांम रे।।