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________________ भरत चरित ९७ १६. ब्राह्मी के कृश शरीर को देखकर भरत की ममता छूट गई। उसमें समता आई। फिर तो उसने ठाट-बाट से उसका दीक्षा महोत्सव कराया। १७. दोनों बहनों का वैराग्य प्रबल था। दोनों ने कुमारी-कन्या के रूप में साधुत्व स्वीकार किया। दोनों ने जैनधर्म को सुशोभित कर दिया। १८. दोनों ऋषभदेव की शिष्याएं बनीं। उन्होंने उन्हें बाहुबल के पास भेजा। दोनों साध्वियां उन्हें समझा कर वापस आ गईं। १९. बाहुबलजी ने उनका वचन मान लिया। अपने मान का मर्दन कर छोटे भाइयों को नमन करने का मन बनाया। २०. अहंकार को छोड़कर ज्यों ही उन्होंने उस दिशा में कदम बढ़ाया कि तत्काल उन्हें केवलज्ञान उत्पन्न हो गया। भाई ने अपनी दोनों बहनों के गुण को जान लिया। २१. ब्राह्मी-सुंदरी समस्त साध्वियों में श्रेष्ठ हो गईं। उनकी वाणी सबको प्रिय लगती। ऐसा लगता कि उनके वचन अमूल्य रत्न की तरह झर रहे हैं। २२. लंबे समय तक दोषों का परिहार कर उन्होंने चारित्र का पालन किया। अनेक जीवों को सन्मार्ग दिखाया। २३. दोनों बहनों की जोड़ी युक्त थी। चौरासी लाख पूरब की आयु पाकर दोनों आठों कर्मों का क्षय कर मोक्ष में गई। .
SR No.032414
Book TitleAcharya Bhikshu Aakhyan Sahitya 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Ganadhipati, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Sukhlal Muni, Kirtikumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2011
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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