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________________ भरत चरित ९५ 1 ५. ब्राह्मी के अमूल्य हीरे के समान निन्यानव सहोदर थे । भरत ने चक्रवर्ती का पद प्राप्त किया । ६. सुंदरी के केवल बाहुबल एक ही सहोदर था । उसने बहत्तर कलाएं सीखीं । उसके बाद सुनंदा के कोई संतान पैदा नहीं हुई । ७. दोनों चतुर बहनों ने चौसठ कलाएं सीखीं । वे सभी गुणों से परिपूर्ण थीं । उनकी बुद्धि में कोई कमी नहीं थी । ८. दोनों बहिनें बत्तीस लक्षणों से संपन्न थीं । ऋषभदेव ने ब्राह्मी को अट्ठारह लिपियां सिखाईं। ९. इनके मन में ब्रह्मचर्य का ही स्वाद बस रहा था। तन में भी कभी विषय को आमंत्रण नहीं दिया । इन्होंने ममता को छोड़कर समता को अपना लिया । १०. दोनों पुत्रियों ने अपने पिता को निवेदन किया कि हमें तो ब्रह्मचर्य ही अच्छा लगता है, अत: हमारा किसी के साथ रिश्ता न करें । ११. हम किसी की पत्नी कहलाना पसंद नहीं करतीं । ससुराल का नाम लेते ही हमें लज्जा आती है। हमें प्रियतम की कोई चाह नहीं है । १२ . पिता श्री बोले- पुत्रियों ! सुनो, तुमने तो मोहजाल - ममता को समेट लिया है। तुम्हारी क्रिया में भी कोई कमी नहीं है । १३. पर तुम्हारा रूप देखकर भरत की कामना जाग गई । भरत तुम्हें दीक्षा नहीं लेने देता। यह सुन ब्राह्मी अपने शील की रक्षा के लिए डट गई । - १४. वह दो-दो दिन के अंतराल से केवल लूखा-सूखा अन्न पानी ग्रहण करने लगी। इससे उसकी फूल जैसी काया मुरझा गई । १५. भरत की उत्कट कामेच्छा को जानकर ब्राह्मी ने तपस्या स्वीकार ली । उसकी गणना साठ हजार वर्ष तक पहुंच गई।
SR No.032414
Book TitleAcharya Bhikshu Aakhyan Sahitya 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Ganadhipati, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Sukhlal Muni, Kirtikumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2011
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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