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________________ २. ३. ४. १. २. ३. ४. दुहा थाय । श्री रिषभ जिणेसर इम कहें, ज्यूं थांनें सुख पिण जोयां तों तिणनें न लाभसों, शब्द सुणाय जों ताहि ।। ए वचन सुणेनें वांह्मी सुंदरी, विनें सहीत चालो बाहुबल नें समझायवा, मन माहे कीयो प्रमांण । उजम आंण ।। ब्राह्मी सुदरी दोनूं जणी, आइ तिण समझायवा, ग्यांन गावें बाहुबल झंगी मझार | तिणवार ॥ ग्यांन गीत गावें छें किण विधें, किण विध आंगें नें ठाय । किण विध केवलग्यांन उपजें, ते सुणजों चित्त ल्याय ।। ढाळ : १५ (लय : चंद्रगुपत राजा सुणी ) वीरा म्हांरा गज थकी ऊतरों, बांह्मी सुंदरी इम गावें रे । बाहुबल नें समझायवा, आंमी साहमी झंगी माहे धावें रे ॥ थे राज रमण रिध परहरी, वळे पुत्र त्रीया अनेको रे। पिण गज नही छूटों ताहरो, तूं मन माहे आण ववेको रे || बाहुबल नें समझायवा, ब्राह्मी सूंदरी इम मोनें रिषभ जिणेसर मोकली, बाहूबल तो वीरा म्हारा गज थकी उतरों, गज चढीयां केवल न होयो रे । आपो खोजों आपरों, तो तूं केवल जोयो रे॥ भासें रे। पासें रे ॥
SR No.032414
Book TitleAcharya Bhikshu Aakhyan Sahitya 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Ganadhipati, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Sukhlal Muni, Kirtikumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2011
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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