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________________ 6. ध्याता ईश्वरं ध्याति-ध्यान करनेवाला ईश्वर का ध्यान करता है। 7. मूषकः धान्यं खादति-चूहा धान खाता है। 8. वक्ता सत्यं वदति-बोलनेवाला सच बोलता है। 9. भुवनस्य कर्तारम् ईश्वरं कुत्र पश्यसि-(तू) जगत् के कर्ता ईश्वर को कहाँ देखता 10. अहं भुवनस्य कर्तारम् ईश्वरं वन्दे-मैं जगत्कर्ता ईश्वर को नमस्कार करता हूँ। (1) त्वं तं ग्रामं गच्छसि ? (2) त्वं तं ग्रामं कदा गमष्यिसि ? (3) त्वं तं ग्रामं किमर्थं न गच्छसि ? (4) त्वं तं ग्रामं गत्वा किम् आनेष्यसि ? (5) त्वं तं बहुशोभनं ग्रामं गत्वा शीघ्रम् अत्र आगच्छ। (6) त्वं तं शोभनम् उदयपुरनामकं नगरं गत्वा तं मित्रं दृष्ट्वा शीघ्रम् एव अत्र आगच्छ। (7) हे धातः ! त्वं भुवनस्य कर्ता असि, त्वया एव सर्वम् एतत् निर्मितम् । (8) ब्राह्यणाय धनं दुग्धं च देहि। (9) ब्राह्यणः अत्र एव अस्ति। (10) तम् अत्र आनय। पाठ 15 शब्द साधुः-साधु, फ़कीर। धावति-वह दौड़ता है। धावामि-दौड़ता हूँ। कर्दमे-कीचड़ में। दुकूलम्-रेशमी वस्त्र। यज्ञः-यज्ञ। हससि-तू हँसता है। वृद्धः-बूढ़ा। बालः-लड़का। वेतनम्-तनखाह। धावसि-तू दौड़ता है। पतितः-गिर गया। स्खलितः-फिसल गया। अञ्जनम्-सुरमा, अंजन। हसति-वह हँसता है। हसामि-मैं हँसता हूँ। युवा-जवान। वाक्य 1. सः किमर्थं हसति-वह क्यों हँसता है ? 2. यतः विष्णुदत्तः तत्र कर्दमे पतितः-क्योंकि विष्णुदत्त वहाँ कीचड़ में गिर गया 3. कथं सः कर्दमे पतितः-वह कीचड़ में कैसे गिर पड़ा ? 4. सः पूर्वं स्खलितः पश्चात् पतितः-वह पहले फिसला और फिर गिर गया।
SR No.032413
Book TitleSanskrit Swayam Shikshak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShripad Damodar Satvalekar
PublisherRajpal and Sons
Publication Year2010
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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