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________________ 210 चि (चयने) = चुनना, इकट्ठा करना - उभयपद परस्मैपद वर्तमान- चिनोति, चिनुतः । चिनोसि, चिनुथः । चिनोमि । भूत - अचिनोत्, अचिनुताम्। अचिनोः। अचिनवम् । भविष्य - चेष्यति । आत्मनेपद वर्तमान- चिनुते, चिन्वाते । चिनुषे । चिनुवे । भूत - अचिनुत । अचिनुथाः । अचिन्वि । ( इस धातु के बकारादि और मकारादि प्रत्यय होने पर दो-दो रूप होते हैं:चिनुवः- चिन्वः, -चिनुमहे, - चिन्महे ।) 1. मि (क्षेपणे) धातु = ( फेंकना) - उभयपद - मिनोति, मिनुतः । मास्यति, मास्यते । अमिनोत्, अमिनुत । 2. कृ (हिंसायाम्) = ( हिंसा करना) - उभयपद - कृणोति, कृणुतः । करिष्यति, करिष्यते, अकृणेत्, अकृणुत । 3. वृ ( वरणे ) = ( पसन्द करना) - उभयपद - वृणोति, वृणुते । वरिष्यति, वरिष्यते । अवृणोत्, अवृणुत । 4. धु (कम्पने ) = ( हिलना) - उभयपद - धुनोति, धुनुत । धोष्यति, धोष्यते । अधुनोत्, अधुनुत । वाक्य 1. सीता रामचन्द्रं अवृणेत् । 2. अहं त्वां वरिष्यामि । 3. ते तत्र गन्तुं न शक्नुवन्ति । 4. अहं नाशक्नुवम् तत्कर्म कर्तुम् । 5. मनुष्यः स्वकर्मणः फलं अश्नुते । 6. स सोमं सुनोति । 7. स सुखं आप्नोति । 8. वयं सर्वे सुखं आप्नुमः । 9. स तदा वक्तुं नाशक्नोत् । 10. यज्ञार्थं सोमं स न सुनुते । 11. त्वं फलानि चिनोषि किम् । सीता ने रामचन्द्र को पसन्द किया । मैं तुझे पसन्द करूँगा । वे वहाँ नहीं जा सकते। 1 मैं समर्थ नहीं था वह कर्म करने के लिए। मनुष्य अपने कर्म का फल भोगता है । वह सोम का रस निकालता है। वह सुख प्राप्त करता है हम सब सुख प्राप्त करते हैं । वह तब बोल न सका । यज्ञ के लिये सोम का रस वह नहीं निकालता । क्या तू फल चुनता है ?
SR No.032413
Book TitleSanskrit Swayam Shikshak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShripad Damodar Satvalekar
PublisherRajpal and Sons
Publication Year2010
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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