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________________ 20. चुर् (स्तेये) = चोरना-चोरयति, चोरयते। चोरयिष्यति, चोरयिष्यते। 21. छद् (आच्छादने) = ढांपना-छादयति, छादयते। छादयिष्यति, छादयिष्यते। वाक्य 1. तौ चित्रयतः। वे दोनों तसवीर बनाते हैं। 2. ते सर्वे चिन्तयन्ते। वे सब सोचते हैं। 3. स द्रव्यं चोरयति। वह पैसा चुराता है। 4. स वने अश्वं गवेषयते। वह जंगल में घोड़े को ढूंढ़ता है। 5. स कृष्णकथां कथयति। वह कृष्ण की कथा कहता है। पाठकों को चाहिए कि वे उक्त धातुओं से इस प्रकार विविध वाक्य बनाकर धातुओं के रूपों का उपयोग करें। धातुओं के रूप बारम्बार बनाने से ही ठीक याद रह सकते हैं। दशम गण। भूतकाल चुर् (स्तेये) उभयपद परस्मैपद। भूतकाल अचोरयत् अचोरयताम् अचोरयन् अचोरयः अचोरयतम् अचोरयत अचोरयम् अचोरयाव अचोरयाम आत्मनेपद। भूतकाल अचोरयत अचोरयेताम् अचोरयन्त अचोरयथाः अचोरयेथाम् अचोरयध्वम् अचोरये अचोरयावहि अचोरयामहि प्रथम गण के समान ही दशम गण भूतकाल के रूप समझ लीजिये, केवल बीच में 'अय' होता है। प्रथम गण। भूतकाल दशम गण। भूतकाल प्रथम पुरुष अच्छदत् अच्छादयत् मध्यम पुरुष अच्छदः अच्छादयः उत्तम पुरुष अच्छदम् अच्छादयम् छद्-'आच्छादने' धातु प्रथम गण और दशम गण में भी है। दोनों के रूपों 184/ का भेद देखिए। यह धातु उभयपद में है, परन्तु परस्मैपद के ही रूप दिये हैं। ५५
SR No.032413
Book TitleSanskrit Swayam Shikshak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShripad Damodar Satvalekar
PublisherRajpal and Sons
Publication Year2010
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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