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________________ सन्धि नियम 1-पदान्त के 'न्' के पश्चात् 'च' अथवा 'छ' आने से 'न' का अनुस्वार+श् बनता है। पदान्त के 'न्' के पश्चात् 'ट' अथवा 'ड' आने पर 'न्' का अनुस्वार+ष् बनता + + + + तांस्तरून् + + पदान्त के 'न्' के पश्चात् 'त' अथवा 'थ' आने पर 'न्' का अनुस्वार+स् बनता है। पदान्त के 'न्' के पश्चात् 'ज', 'झ', अथवा 'श' आने पर 'न्' के अनुस्वार का +'ञ्' बनता है। पदान्त के 'न्' के पश्चात् 'ड' अथवा 'ढ' आने पर 'न्' के अनुस्वार का + 'ण' बनता है। पदान्त के 'त्' के पश्चात् 'ल' आने पर 'न्' के अनुस्वार का अनुस्वार+ल् बनता है। उदाहरण-तान् चौरान् ताँश्चौरान् सर्वान् + छात्रान् सर्वांश्छात्रान् तस्मिन् टीका तस्मिंष्टीका तान् तरून् कान् जनान् काञ्जनान् यान् शत्रून् याञ्छत्रून् डिम्भान् ताण्डिम्भान् तान् लोकान् = ताँल्लोकान् शब्द-पुल्लिंग सार्थवाह व्यापारी। मनीषिन् विद्वान्। काक-कौवा। अनुचर नौकर, सेवक। सार्थ झुण्ड, (व्यापारी)। जम्बूक गीदड़। आहार भोजन। उष्ट्र-ऊँट । वायस कौवा। खल दुष्ट। उपवास व्रत, लंघन। स्त्रीलिंग उक्ति भाषण। कुति=पेट, बग़ल। नपुंसकलिंग पाप-पातक। कूट-कुटिल, सलाह। शरीरवैकल्य शरीर की शिथिलता। |90 मांस गोश्त। तान् + +
SR No.032413
Book TitleSanskrit Swayam Shikshak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShripad Damodar Satvalekar
PublisherRajpal and Sons
Publication Year2010
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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