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________________ नियम 2-शब्द के अन्दर के अनुस्वार अथवा मकार के सम्मुख पूर्वोक्त पांच वर्ग के व्यंजन आने से, उस अनुस्वार अथवा मकार का, उसी वर्ग का अनुनासिक बनता है जैसे अलंकार = अलङ्कारः [ज़ेवर] पंचांगम् = पञ्चाङ्गम् [जन्त्री] मंदिरम् = मन्दिरम् [घर] पंडितः = पण्डितः [विद्वान्] पंपा = पम्पा [एक सरोवर] परन्तु आजकल यह नियम कुछ शिथिल हो गया है। छपाई तथा लिखने के सुभीते के लिए दोनों प्रकार के रूप छापे तथा लिखे जाते हैं। पाठकों को यही समझना चाहिए कि ये नियम विशेषतया उच्चारण के लिए होते हैं। अनुस्वार लिखा जाए अथवा परसवर्ण अनुनासिक लिखा जाए, दोनों का उच्चारण एक ही प्रकार का होना चाहिए। जैसे गंगा इन दोनों का उच्चारण 'गङ्गा' ही करना चाहिए। गङ्गा हिन्दी में भी यह नियम बहुतांश में चलता है, जैसे 'कंघी, घंटा, धंधा, अंदर, जंग, गंज, गुंफा' इत्यादि शब्द 'कङ्घी, घण्टा, धन्धा, अन्दर, जङ्ग, गञ्ज, गुम्फा' ऐसे ही बोले जाते हैं। कोई ग़लती से 'घम्टा, धम्धा उच्चारण करेगा तो उस पर लोग हंसने लगेंगे। यही बात संस्कृत शब्दों की भी समझनी चाहिए। सातवें पाठ के नियम 2 के विषय में भी यही समझना चाहिए कि अनुस्वार अथवा 'म्' के आगे अलग स्वर भी लिखा जाए तो दोनों को मिलाकर ही उच्चारण करना चाहिए। जैसे गृहम् आगच्छ = (इसका उच्चारण) । गृहमागच्छ तम् आनय = , तमानय वृक्षम् आलोक्य = , वृक्षमालोक्य दृष्टम् अस्ति = दृष्टमस्ति सुगमता के लिए किसी भी प्रकार लिखा जाए परन्तु उच्चारण एक जैसा होना चाहिए। यदि किसी कारण वक्ता उनको अलग-अलग बोलना चाहे तो बोल सकता है। इस पुस्तक में पाठकों के सुभीते के लिए मकार, अनुस्वार तथा स्वर अनेक स्थानों पर अलग ही छापे हैं। अब कुछ शब्द नीचे दिये जा रहे हैं। 47
SR No.032413
Book TitleSanskrit Swayam Shikshak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShripad Damodar Satvalekar
PublisherRajpal and Sons
Publication Year2010
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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