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________________ प्रकार के सहस्रों सामासिक शब्द संस्कृत में प्रतिदिन प्रयुक्त होते हैं। समासों के द्वारा थोड़ा बोलने से ज्यादा अर्थ व्यक्त होता है। _1. 'गंगायाः लहरी' ऐसा कहने की अपेक्षा 'गंगालहरी' कहने से ही 'गंगा की लहर' अर्थ व्यक्त होता है। 2. 'पीतम् अम्बरं यस्य सः' कहने की अपेक्षा 'पीताम्बरम्' ही कहने से पीला है वस्त्र जिसका वह (विष्णु)' अर्थ निष्पन्न होता है। 3. तस्य वचनम् तद्वचनम्। 4. प्रजायाः हितम् प्रजाहितम्। 5. भरतस्य पुत्रः भरतपुत्रः। इसी प्रकार अन्यान्य शब्दों के विषय में जानना चाहिए। जब पाठकों के सामने इस प्रकार का सामासिक शब्द आ जाए, तब प्रथम उनके पद अलग-अलग करके और पूर्वापर सम्बन्ध देखकर उन पदों का अर्थ लगाना चाहिए। जैसे 1. अकीर्तिकरम् = अ + कीर्ति + करम् = न कीर्तिः = अकीर्तिम्: अकीर्ति करोति इति = अकीर्तिकरम्।। 2. मूषकशावकः = मूषक + शावकः = मूषकस्य शावकः = मूषकशावकः। 3. रक्तविलिप्तमुखपादः = रक्त + विलिप्त + मुख + पादः = रक्तेमु विलिप्तम् = रक्तविलिप्तम्। मुखं च पादः च = मुखपादौ । रक्तविलिप्तौ मुखपादौ यस्य सः = रक्तविलिप्तमुखपादः। इस प्रकार समासों को तोड़ा जाता है, ऐसा करने से समास का अर्थ खुल जाता है। समासों के प्रकार बहुत से हैं। उन सबका वर्णन हम आगे करेंगे। यहां केवल नमूना दिया जा रहा है। नियम 1-संस्कृत में अकार के बाद आनेवाले विसर्ग के सम्मुख अकार आ जाने से इस अकार सहित विसर्ग का 'ओ' बन जाता है, और आगे का अकार लुप्त हो जाता है तथा अकार के स्थान पर, अकार का सूचक 5 ऐसा चिह्न लगा दिया यह चिह्न अवश्य लिखना चाहिए, ऐसा कोई नियम नहीं है। कुछ लोग लिखते हैं, कुछ नहीं लिखते। बोलने में अकार का उच्चारण नहीं होता (परन्तु बोलनेवाले की इच्छा हो तो वह अकार का उच्चारण कर भी सकता है।) अर्थात् सन्धि का नियम वक्ता चाहे तो प्रयोग में ला सकता है। जैसे___ 1. कः अपि कोऽपि। 2. रामः अगच्छत् रामोऽगच्छत्। | अ:+अ ओऽ 3. धन्यः अस्मि=धन्योऽस्मि।
SR No.032413
Book TitleSanskrit Swayam Shikshak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShripad Damodar Satvalekar
PublisherRajpal and Sons
Publication Year2010
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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