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________________ भी स्वीकार करेंगे कि इस विधि से संस्कृत-मन्दिर में उनका प्रवेश सुगमता से हो रहा है। अब इस नियम का सही ज्ञान कराने के लिए एक उदाहरण देते हैं[1] ततस्तमुपकारकमाचार्यमालोक्येश्वरभावनायाह। यह वाक्य सन्धियां करके लिखा है। यद्यपि इसमें बड़ी सन्धि प्रायः कोई नहीं है तब भी सब जोड़कर लिखने से पाठक इसको उस तरह नहीं समझ सकते जैसे निम्न प्रकार से लिखने पर समझ सकते हैं [2] ततः तम् उपकारकम् आचार्यम् आलोक्य ईश्वर-भावनया आह [पश्चात् उस उपकार करनेवाले आचार्य को देखकर ईश्वर की भावना से (अर्थात् आदर भाव से) कहा। उपरोक्त दोनों वाक्य एक ही हैं परन्तु प्रथम वाक्य कठिन है; दूसरा आसान है। इसका कारण द्वितीय वाक्य में कोई सन्धि न होना है। इसी प्रकार बोलनेवाला अपनी मर्जी के अनुसार सन्धि करे अथवा न करे-यह उसकी और सुनने वाले की सुविधा पर निर्भर है। कुछ लोग समझते हैं कि संस्कृत में संधियाँ आवश्यक हैं, परन्तु यह गलत है। बोलनेवाला अपनी इच्छा से जहां चाहे सन्धि करे, जहां न चाहे वहां जैसे के तैसे शब्द रहने दे। यह बात सब प्रकार की सन्धियों के विषय में सही है। पुस्तक में मुख्य-मुख्य सन्धियों के नियम दिए जाएंगे, पाठक इन नियमों को अच्छी प्रकार समझकर, जहां-जहां सन्धि करने की आवश्यकता हो, वहां-वहां नियमानुसार सन्धि का उपयोग करें। लोग समझते हैं कि ये सन्धियां केवल संस्कृत में ही हैं परन्तु यह उनकी भूल है। फ्रेंच, जर्मन आदि भाषाओं में भी सन्धियां हैं। इंगलिश में भी सन्धियां हैं, देखिए 1. It is—इट इज़-यह वाक्य 'इटीज़' ही बोला जाता है। 2. It is arranged out of court इट इज अरेंज्ड आउट ऑफ़ कोर्ट यह वाक्य निम्नलिखित प्रकार बोला जाता है इ-टी-ज़रेंझ्डाउटाफ कोर्ट इस प्रकार इंगलिश में सहस्रों स्थानों पर बोलनेवाले के इच्छानुरूप संधियां होती हैं परन्तु अंग्रेजी व्याकरण में इनके विषय में कोई नियम नहीं दिये हैं। केवल इसी कारण लोग समझते हैं कि अंग्रेज़ी में कोई सन्धि नहीं होती। जर्मन भाषा में तो संधियों की भरमार है। इसी प्रकार हिन्दी में भी स्थान-स्थान पर सन्धियां होती हैं। देखिए आप कब घर में जाते हैं। 28
SR No.032413
Book TitleSanskrit Swayam Shikshak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShripad Damodar Satvalekar
PublisherRajpal and Sons
Publication Year2010
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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