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________________ 2. हि...न्दू...पा...नी... 3. चा...य...ग...र...म... इसी प्रकार अन्य सैकड़ों स्थानों पर प्लुत स्वर का श्रवण होता है। वेदों के मन्त्रों में जहां 3 (तीन) संख्या दी हुई रहती है, उसके पूर्व का स्वर प्लुत बोला जाता है। मुरगी 'कु। कू2 कू3' ऐसी आवाज़ देती है; उसमें पहला 'उ' ह्रस्व, दूसरा दीर्घ तथा तीसरा प्लुत होता है। इन स्वरों के भेदों के सिवाय 'उदात्त, अनुदात्त, स्वरित' ऐसे प्रत्येक स्वर के तीन भेद हैं, जो केवल वेद में आते हैं। इनका वर्णन आगे के विभागों में होगा। संकेतार्थ अ, अ, अ, स्वर उदात्त, अनुदात्त, तथा स्वरित अकार वेद में आते हैं। __13 -गुण स्वर-अ, ए, ओ, अर्, अल् 14 -वृद्धि स्वर-आ, ऐ, औ, आर्, आल् उक्त गुण-वृद्धि क्रम से अ, इ, उ, ऋ, लु, इन स्वरों को समझना चाहिए। इस प्रकार स्वरों का सामान्य विचार समाप्त हुआ। 2-व्यञ्जन (1) कण्ठ स्थान-कवर्ग-क, ख, ग, घ, ङ (2) तालु स्थान-चवर्ग-च, छ, ज, झ, ञ (3) मर्धा स्थान-टवर्ग-ट. ठ. ड. ढ. ण (4) दन्त स्थान-तवर्ग-त, थ, द, ध, न (5) ओष्ठ स्थान-पवर्ग-प, फ, ब, भ, म इन पच्चीस व्यञ्जनों को ‘स्पर्श वर्ण' कहते हैं। (6) अन्तःस्थ व्यञ्जन-य (तालु-स्थान); व (दन्त तथा ओष्ठ-स्थान); र (मूर्धा-स्थान); ल (दन्त-स्थान)। इन चार वर्णों को 'अन्तःस्थ व्यञ्जन' कहते हैं। (7) ऊष्म व्यञ्जन-श (तालव्य); ष (मूर्धन्य); स (दन्त्य); ह (कण्ठ्य)। इन चार वर्णों को 'ऊष्म व्यञ्जन' कहते हैं। (8) मृदु अथवा घोष व्यञ्जन-ग, घ, ङ, ज, झ, ञ ड, ढ, ण, द, ध, न ब, भ, म, य, र, ल, व, ह इन बीस व्यञ्जनों को मृदु व्यञ्जन कहते हैं, क्योंकि इनका उच्चारण मृदु अर्थात् - नरम, कोमल होता है। (इनकी श्रुति स्पष्टतर अनुभव होने से इन्हें 'घोष' भी कहते
SR No.032413
Book TitleSanskrit Swayam Shikshak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShripad Damodar Satvalekar
PublisherRajpal and Sons
Publication Year2010
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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